________________ षष्ठ परिच्छेद 547 है / इस का तात्पर्य यह है, कि उपशम अरु क्षायोपशमिक यह दो भाव सयोगी केवली के नहीं होते हैं। ___ अथ तिस केवली के केवलज्ञान के वल को कहते हैं। तिस केवली परमात्मा केवलज्ञान रूप सूर्य के प्रकाश करके चराचर जगत् हस्तामलकवत्-हाथ में रक्खे हुए आमले की तर प्रत्यक्ष-साक्षात्कार करके भासमान होता है। यहां प्रकाशमान सूर्य की उपमा जो कही है, सो व्यवहार मात्र से कही है, निश्चय से नहीं कही। कारण कि निश्चय में तो केवल ज्ञान का अरु सूर्य का बड़ा अंतर है। ___ अथ जिस ने तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया है, तिस की विशेषता कहते हैं। विशेष करके अहंत की भक्ति प्रमुख वीस पुण्य स्थान विशेष का जो जीव आराधन करता है, सो तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन करता है / सो वीस स्थान यह हैं:* अरिहंत सिद्ध पवयण, गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सोस / वच्छलया एएसुं अभिक्खनाणोवोगे अ॥१॥ दंसणविणए आवस्सए असीलव्वए निरइयारे / * अर्हसिद्धप्रवचनगुरुस्थविरवहुश्रुते तपस्विषु / वात्सल्यमेतेषु अभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगौ च // 1 // दर्शनविनयौ आवश्यकानि च शीलवते निरतिचारता।