________________ 544 जैनतत्त्वादर्श तिस ही परमात्मद्रव्य के केवलं पर्याय अथवा अद्वितीय गुण का चिन्तन किया जावे / इस प्रकार से जहां एक द्रव्य, एक गुण, एक पर्याय का निश्चल-चलनवर्जित ध्यान किया जावे, सो एकत्व ध्यान है। ___ अथ अविचारपना कहते हैं / इस काल में सद्धयानकोविद अर्थात् शुक्लध्यान का जाननेहारा, पूर्व मुनिप्रणीत शास्त्रानाय विशेष से ही ज्ञात हो सकता है, परन्तु शुक्ल ध्यान का अनुभवी इस काल में कोई नहीं / यदाहुः श्रीहेमचन्द्रसूरिपादाः*अनविच्छित्याऽऽनायः, समागतोऽस्येति कीर्त्यतेऽस्माभिः / दुष्करमप्याधुनिकैः शुक्लध्यानं यथाशास्त्रम् // [यो० शा०, प्र० 11 श्लो० 4] तथाच जिन सद्ध्यानकोविदों ने शास्त्रानाय से शुक्ल ध्यान का रहस्य जाना है, तिनों ने अविचार विशेषण संयुक्त दूसरे शुक्लध्यान का स्वरूप कहा है, सो क्या है ? जो पूर्वोक्त स्वरूप व्यंजन अर्थ योगों में एतावता शब्दार्थ योगरूपों में परावर्त विवर्जित-शब्द से शब्दांतर, इत्यादि क्रम से रहित श्रुत शान के अनुसार ही चिंतन किया जाता है, सो अविचार शुक्लध्यान है। ___ अथ सवितर्क कहते हैं / जिस ध्यान में भावभुत के mmmmmmmmmsssanwar * 'अनवस्थित्या०' पाठान्तर है। /