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________________ 54 जैनतत्त्वादर्श प्रश्न-उपशमश्रेणि वाला मोक्ष के योग्य कैसे हो सकता है ? ___ उत्तरः-सात जो लव है, सो एक मुहूर्त का ग्यारवां हिस्सा है, तब तो लवसत्तमावशेष आयु वाला ही खण्डित उपशमश्रेणि करने वाला पराङ्मुख हो कर सातमे गुणस्थान में आ करके फिर क्षपक श्रेणि में चढ़ कर सात लव के बीच ही में क्षीणमोह गुणस्थान में हो कर, अंतकृत केवली हो कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है / इस वास्ते दूषण नहीं / तथा जो पुष्टायु उपशमश्रेणि करता है, सो अखण्डित श्रेणि करके, चारित्र मोहनीय का उपशम करके ग्यारवे गुणस्थान में पहुंच कर उपशमश्रेणि को समाप्त करके गिर पड़ता है / ___ अव औपशमिक जीव अपूर्वादि गुणस्थानों में जिन कर्म प्रकृतियों को उपशांत करता है, सो कहते हैं। संज्वलन लोभ को वर्ज के मोहनीय कर्म की शेष वीस प्रकृति को अपूर्वकरण अरु अनिवृत्तिवादर, इन दोनों गुणस्थानों में उपशम करता है / तिसके पीछे क्रम करके सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में संज्वलन के लोम को सूक्ष्म करता है / तिस पीछे क्रम करके उपशांतमोह गुणस्थान में तिस सूक्ष्म लोभ का ommmmmmmmmirmirm .....mm AAAAAAAAAAAAAA तावन्मानं नाभूत् ततो लवसप्तमा जाताः // 1 // सर्वार्थसिद्ध नाम्नि ( विमाने ) उत्कृष्टस्थितिधु विजयादिषु / एकावशेषगर्भा भवन्ति लवसप्तमा देवाः // 2 //
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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