________________ षष्ठ परिच्छेद 523 उपशमक मुनि शुक्लध्यान का प्रथम पाया, उपशमश्रेणि जिस का स्वरूप आगे लिखेंगे, उस को ध्याता हुआ उपशमश्रेणि को अंगीकार करता है / वो मुनि पूर्वगत श्रुत का धारक, निरतिचार चारित्रवान् और आदि के तीन संहनन से युक्त होता है, अर्थात ऐसी योग्यता वाला मुनि उपशमश्रेणि करता है। ___ उपशम श्रेणि वाला मुनि जेकर अल्प आयु वाला होवे, तब तो काल करके "अहमिंद्र" अर्थात् पांच अनुत्तर विमान में सर्वार्थसिद्धादि देवों में उत्पन्न होता है / परन्तु जिस के प्रथम संहनन होवे, वो ही अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है, क्योंकि अपर संहनन वाला अनुत्तर विमान में उत्पन्न नहीं होता / और सेवा संहनन वाला तो चौथे महेंद्र स्वर्ग तक जा सकता है / तथा कीलिकादि चार संहनन वालों के दो दो देवलोक की वृद्धि कर लेनी / अरु प्रथम संहनन वाला तो मोक्ष तक जाता है / अरु जो सात लव अधिक आयु वाला मोक्ष योग्य होता है, वोही सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होता है / यदाहः *सत्त लवा जइ आउं, पहुप्पमाणं तओ हु सिझता / तत्तिअमिन न हुयं, तत्तो लवसत्तमा जाया // 1 // सव्वट्ठ सिद्धनामे, उकोसठिइसु विजयमाईसु / एगावसेसगम्भा, हवंति लवसत्तमा देवा // 2 // [गुण क्रमा० श्लो० 41 की वृत्ति ] * छायाः-सप्तलवा यदि आयुः प्राभविष्यत् तदाऽसेत्स्यन्नेव /