________________ षष्ठ परिच्छेद 521 आहारकोपांग, इन दो प्रकृतियों का बंध करता है / इस वास्ते उनसठ प्रकृति का बंध करता है / तथा जेकर देवायु न बांधे, तब अट्ठावन प्रकृति का बंध करता है। यदि स्त्यानर्द्धि त्रिक, अरु आहारक द्विक के उदय का व्यवच्छेद करे, तब छिहत्तर प्रकृति का फल वेदता है / अरु 138 प्रकृति की इस में सत्ता है। ____ अव आठवां अपूर्वकरण, नवमा अनिवृत्तिबादर, दसवां सूक्ष्मसंपराय, ग्यारहवां उपशांतमोह, और बारहवां क्षीणमोह, इन पांच गुणस्थानों का नामार्थ सामान्य प्रकार से लिखते हैं। उक्त अप्रमसंयत-सातमे गुणस्थान-वर्ती जीव चार संज्वलन कषाय, छे नो कषाय, इन के मंद होने पर अप्राप्तपूर्व अत्यन्त परमाह्लाद रूप अपूर्व पारिणामिक भाव जव प्राप्त होता है, तव वह अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थान में आता है। इस का नाम अपूर्वकरण इस वास्ते कहते हैं, कि इस गुणस्थान में अपूर्व,आत्मगुण की प्राप्ति होती है। __तथा देखे, सुने और अनुभव किये हुए जो भोग, तिन की आकांक्षारूप संकल्प विकल्प से रहित, निश्चल परमास्मैकतत्त्वरूप प्रधान परिणतिरूप भावों की निवृत्ति नहीं होती, इस वास्ते इस नवमे गुणस्थान को अनिवृत्ति गुणस्थान कहते हैं / इसका नाम जो अनिवृत्तिबादर भी है, उस का कारण यह है, कि इसमें अप्रत्याख्यानादि जो द्वादश बादर