________________ 506 जैनतत्त्वादर्श / *मज्ज विसय कसाया, निद्दा विगहा य पंचमी भणिया। एए पंच पमाया, जीव पाडंति संसारे / / - [गुण क्रमा० श्लो० 27 की वृत्ति में संगृहीत ] : भावार्थ:--मद्य, विषय, कषाय, निद्रा, अरु विकथा, यह पांच प्रमाद हैं, सो जीव को संसार में गिराते हैं, जो साधु इन पांचों प्रमादों करके संयुक्त होवे, अरु संज्वलन कषाय का उदय होवे, तब महामुनि महाव्रती साधु अवश्य अन्तमुहर्त काल तक सप्रमाद होने से प्रमादी होता है / जेकर अंतर्मुहूर्त से उपरांत भी प्रमादी ,होवे, तव तो प्रमत्त गुणस्थान से भी नीचे गिर पड़ता है, अरु जेकर अंतर्मुहूर्त से उपरांत भी प्रमाद रहित होवे, तो फिर अप्रमत्त गुणस्थानमें चढ़ जाता है। अब प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ध्यान का संभव कहते हैं। इस गुणस्थान में मुख्य तो आतध्यान, उपलक्षण से रौद्र ध्यान का भी संभव है, क्योंकि उस में नोकषाय-हास्यादि षटक की विद्यमानता रहती है। तथा आशादि आलंबन युक्त धर्मध्यान की गौणता है / वह धर्मध्यान-१. आशा, 2. अपाय 3. विपाक, 4. और संस्थान विचय रूप आलम्बन युक्त होता है / तथा आज्ञा विचय, अपायविचय विपाकविचय '.. * छाया-मद्यं विषयकषाया निद्रा विकथा च पंचमी भणिता / एते पञ्चप्रमादा जीवं पातयन्ति संसारे // .nmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww com