________________ षष्ठ परिच्छेद 503 *पाउट्टि थूल हिंसाइ, मज मंसाइचायओ। , जहन्नो सावनो होइ, जो नमुक्कारधारो॥ [श्रा० दि० अवचूर्णी गा० 225 ] तथा मध्यम देशविरति-धर्म योग्य गुणों करी, आकीर्ण, गृहस्थोचित्त षट्कर्म रूप धर्म में तत्पर, द्वादश व्रत का पालक, सदाचारवान् होवे, तो मध्यम श्रावक जानना / तथा उत्कृष्टदेशविरति-सचित्त आहार का वर्जक, प्रतिदिन एकाशन करे, ब्रह्मचारी होवे, महावत अंगीकार करने की इच्छा वाला होवे, गृहस्थ का धंदा जिस ने त्यागा है, ऐसा जो होवे, सो उत्कृष्टदेशविरति है / यह तीन प्रकार की विरति. जिस को होवे, उस को श्राद्ध अर्थात् श्रावक कहते हैं / देशविरति की उत्कृष्टी स्थिति देशोनकोटिपूर्व की है। ___ अथ देशविरति गुणस्थान में ध्यान का संभव कहते हैं। इस गुणस्थान में 1. अनिष्टयोगार्त, 2. इष्टवियोगात, 3. रोगात, 4 निदानात, यह चार पाद रूप आर्तध्यान, तथा 1. हिंसानंदरौद्र, 2. मृषानन्दरौद्र, 3. चौर्यानंदरौद्र, 4. संरक्षणानंदरौद्र, यह चार पाद वाला रौद्र ध्यान है / देशविरति के आर्त और रौद्र ध्यान मंद होता है। जैसे जैसे देशविरति अधिक अधिकतर होती है, तैसे तैसे आर्त रौद्र * आकुटिस्थूलहिंसादिमद्यमांसादित्यागात् / जघन्यः श्रावको भवति, यो नमस्कारधारकः // ,