________________ षष्ठ परिच्छेद 501 अनिवृत्तिकरण करके विशुद्ध होकर उदय को प्राप्त हुए मिथ्यात्व को क्षय करके और उदय नहीं हुए को उपशांत कर देवे, तब क्षायोपशनिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है / जव जीव में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है, तव उस को मनुष्यगति और देवगीत की प्राप्ति होती है / तथा अपूर्वकरण करके जिस जीव ने तीन पुंज किये हैं, वह यदि चौथे गुणस्थान से ही क्षपकपने का जब आरम्भ करे तो अनंतानुबंधी चार, मिथ्यामोह, मिश्रमोह, अरु सम्यक्त्व मोहरूप तीनों पुंजों के क्षय होने से उसे क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है / तब क्षायिक सम्यग्ष्टि जीव जेकर अवद्धायु है, तब तो तिसी भव में मोक्ष को प्राप्त हो जायेगा। अरु जेकर आयु वांध कर पीछे से क्षायिकसम्यक्त्ववान् हुआ है, तव उस का तीसरे भव में मोक्ष होता है / तथा जेकर असंख्यात वर्ष जीने वाले मनुष्य ने तिर्यंच का आयु बांध कर पीछे से क्षायिकसम्यक्त्व को प्राप्त किया हो, तब चौथे भव में मोक्ष होता है। ___अब अविरति गुणस्थानकवर्ती जीव का कृत्य लिखते हैं। व्रत नियम तो उस के कोई भी नहीं होता है, परन्तु देव में अर्थात भगवान् श्रीवीतराग में, अरु उक्तलक्षण गुरु में तथा श्रीसंघ में क्रम करके भक्ति, पूजा, नमस्कार, वात्सल्यादि कृत्य करता है / तथा प्रभावक श्रावक होने से शासन की उन्नति-शासन की प्रभावना करता है / तथा अविरांत