________________ 500 जैनतत्त्वादर्श तो डरता हुआ पीछे को दौड़ गया, अरु एक पथिक को चोरों ने पकड़ लिया, अरु एक पथिक तिन चोरों से लड़ भिड़ और मार पीट करके अगले नगर में पहुंच गया / यह तो दृष्टांत है / इस का दात ऐसे है, कि उजाड़ तो मनुष्य भव है, तिस में कर्मों की जो स्थिति है, सो दीर्घ रास्ता है, और जो गांठ है, सो भय का स्थान है, अरु राग द्वेष यह दोनों चोर हैं / अव जो पुरुष पीछे को दौड़ा है, तिस की तो स्थिति संसार में रहने की अधिक हो जाती है, अरु जो पुरुष पकड़ा गया, वो गांठ के पास जाकर खड़ा हो गया, सो राग द्वेष चोरों ने पकड़ लिया, वो मी दुःखी है, अरु जिस ने सम्यक्त्व पा लिया, सो गाम में पहुंच गया, ताते सुखी भया / यह दृष्टांत तीनों करण के साथ जोड लेना। अब कीडियों के दृष्टांत करके तीनों करणों का स्वरूप लिखते हैं, जैसे कितनी एक कीडियां बिल में से निकल कर एक खूटे के तले भ्रमण करती हैं, कोई एक उस खूटे के ऊपर चढ़ती हैं, अरु कितनी एक खूटे के ऊपर चढ़ कर पंख लग जाने से उड गई हैं। यह तीनों करण भी इसी तरें जान लेने। तब तो यह जीव यथाप्रवृत्तिकरण करके ग्रंथि देश को प्राप्त होता है, और अपूर्वकरण करके ग्रंथिका भेद करता है / तथा ग्रंथिभेद करके कोई एक जीव मिथ्यात्व * की पुद्गल राशि को विभाजित-बांट करके मिथ्यात्वमोह, मिश्रमोह, सम्यक्त्व मोह रूप तीन पुंज करता है / जब