________________ 488 है, सा जैनतत्त्वादर्श षष्ठ परिच्छेद इस षष्ठ परिच्छेद में चौदह गुणास्थान का स्वरूप किंचित् मात्र लिखते हैं:यह भव्य जीवों को सिद्धिसौध पर चढ़ने के वास्ते गुणों ___की श्रेणी अर्थात् निसरणी है, तिस गुण गुणस्थान के निसरणी में पगधरण रूप-गुणों से गुणां१४ भेद तर की प्राप्तिरूप जो स्थान अर्थात् भूमिका है, सो चौदह हैं / तिन के नाम यह हैं:१. मिथ्यात्व गुणस्थान, 2. सास्वादन गुणस्थान, 3. मिश्र गुणस्थान, 4. अविरतिसम्यक्दृष्टि गुणस्थान, 5. देशविरति गुणस्थान, 6. प्रमत्तसंयत गुणस्थान, 7. अप्रमत्तसंयत गुणस्थान, 8. अपूर्वकरण गुणस्थान, 9. अनिवृत्तवादर गुणस्थान, 17. सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान, 11. उपशांतमोह गुणस्थान, 12. क्षीणमोह गुणस्थान, 13. सयोगीकेवली गुणस्थान, 14. अयोगीकेवलीगुणस्थान / यह चौदह गुणस्थान, अर्थात् गुण रूप भूमिकाओं के नाम हैं / तहां प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान का स्वरूप कहते हैं / उस में भी प्रथम व्यक्त, अव्यक्त मिथ्यात्व मिथ्यात्व गुण- का स्वरूप कहते हैं / जो स्पष्ट चैतन्य संक्षी पंचेंद्रिय जीवों की अदेव, अगुरु और अधर्म, इन तीनों में क्रम करके देव, गुरु, और धर्म स्थान