________________ पंचम परिच्छेद के अनंत भाग में हैं / आठमा भाव द्वार-सो सिद्ध को क्षायिक और पारिणामिक भाव है, शेष भाव नहीं / नवमा अल्प बहुत्वद्वार-सो सर्व से थोडे अनंतरसिद्ध हैं। अनंतरसिद्ध उन को कहने हैं कि जिन को, लिद हुए एक समय हुआ है, तिन से परंपरा सिद्ध अनंत गुणे हुए हैं / छः मास सिद्ध होने में उत्कृष्ट अंतर होता है / यह मोक्षतत्व का स्वरूप संक्षेप मात्र से लिखा है, जेकर विशेष करके सिद्व का स्वरूप देखना होवे, तदा नंदीसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, सिद्धप्रामृतसूत्र, सिद्धपंचाशिका, देवाचार्यकृत नवतत्त्व प्रकरण की वृत्ति देख लेनी। इति श्री तपागच्छीय मुनिश्रीवुद्धिविजय शिष्य मुनि आनंदविजय-आत्माराम विरचिते जैनतत्त्वादशैं पंचमः परिच्छेदः संपूर्णः