________________ 486 जैनतत्त्वादर्श ग्रहण किये जाते हैं / संशा होवे जिन के सो संज्ञी। जैसे कि यह करा है, यह करूंगा, यह मैं कर रहा हूं, ऐसे जो त्रिकालविषयक मनोविज्ञान वाले जीव हैं, तिन को संज्ञी कहते हैं / इन से जो विपरीत होवे, सो असंज्ञी जानने / संक्षी तथा असंज्ञी, इन दोनों ही में सिद्ध पद नहीं। क्योंकि सिद्ध तो नोसंही नोअसंही हैं। [14] ओज आहार, लोम आहार, प्रक्षेप आहार, यह तीन प्रकार का आहार है / इन तीनों आहारों में सिद्ध नहीं / यह प्रथम सत्पद प्ररूपणद्वार कहा है। दूसरा द्रव्य प्रमाण द्वार लिखते हैं / गिनती करिये तो सिद्धों के जीव अनंत हैं। तीसरा क्षेत्रद्वार-सो आकाश के एक देश में सर्व सिद्ध रहते हैं / वो आकाश का देश कितना बड़ा है, सो कहते हैं। कि धर्मास्तिकायादिक पांच द्रव्य जहां तक हैं, तहां तक लोक है, ऐसा जो लोक संवन्धी आकाश, तिस के असंख्य भाग में सिद्ध रहते हैं / चौथा स्पर्शना द्वार-सो जितने आकाश में सिद्ध रहते हैं, स्पर्शना उस से किंचित् अधिक है / पांचमा काल द्वार-सो एक सिद्ध के आश्रित सादि अनंतकाल है, और सर्व सिद्धाश्रित अनादि अनंतकाल जानना / छठा अंतरद्वार-सो सिद्धों के विचाले अंतर नहीं, सर्व सिद्ध मिल के एक ही रूपवत् रहते हैं / सातमा भाग द्वार-सो सिद्ध जो हैं, वो सर्व जीवों