________________ 484 जैनतत्त्वादर्श नहीं है / एक केवल ज्ञान में सिद्धपना है। सो केवल ज्ञान यहां सिद्धावस्था का जानना, परन्तु सयोगी अवस्था का नहीं / [8] सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, अरु यथाख्यात, यह पांच चारित्र / तथा इन के विपक्षी देश संयम, अरु असंयम | तहां पांच विध चारित्र में तथा दोनों विपक्षों में सद्धपना-मोक्षपना, नहीं, क्योंकि यह सर्व शरीरादि के हुए ही होते हैं, सो शरीरादिक सिद्धों को है नहीं। [6] चक्षु, अचक्षु, अवधि, अरु केवल, इन चारों दर्शन में से आदि के तीनों दर्शन में सिद्धपना नही, परन्तु केवल दर्शन में केवलज्ञानवत् सिद्धपना जान लेना / [10] कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म, अरु शुक्ल, यह छे प्रकार की लेश्याओं में सिद्धपना नही / क्योंकि लेश्या जो हैं, सो भवस्थ जीव के पर्याय हैं. सिद्ध तो अलेशी हैं। [11] भव्य, अभव्य, इन दोनों में सिद्धपना नहीं, क्योंकि भव्यजीव उस को कहते हैं. कि जिस को सिद्धपद की प्राप्ति होवेगी, परन्तु सिद्धा ने तो अब कोई नवीन सिद्ध पदवी पानी नहीं है, इस वास्ते भव्यपना सिद्धों में नहीं / अरु अभव्यजीव उस को कहते हैं, कि जिस में सिद्ध होने की योग्यता किसी काल में भी न होवे, ऐसा सिद्ध का जीव नहीं है / क्योंकि उस में अतीत काल में सिद्ध होने की योग्यता थी / इस वास्ते सिद्ध अभव्य भी