________________ पंचम परिच्छेद 483 इन पांचों प्रकारों में सिद्ध पना नहीं, क्योंकि सर्वथा शरीर के परित्यागने से सिद्ध होता है। जहां शरीर नहीं तहां इन्द्रिय भी कोई नहीं / इसी वास्ते सिद्ध अतींद्रिय हैं। [3] 1. पृथिवीकाय, 2. अपकाय, 3. तेजःकाय, 4. पवनकाय, 5. वनस्पतिकाय, '6. त्रसकाय / इन छे ही कायों के जीवों में सिद्धपना नहीं। क्योंकि सिद्ध, जो हैं, सो अकाय-काय रहित हैं। [4] काय, वचन अरुं मन के भेद से योग तीन हैं / उस में केवल काययोग वाले एकेंद्रिय जीव हैं, अरु काय वचन योग वाले द्वींद्रियादि असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्यंत जीव हैं, अरु काय, वचन, मन योग वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव हैं / इन तीनों योगों में सिद्धपने की सत्ता नहीं। क्योंकि सिद्ध अयोगी हैं, अरु अयोगीपना तो काय वचन अरु मन के प्रभाव से होता है / [श स्त्री, पुरुष, नपुंसक, इन तीनों वेदों में सिद्ध पद की सत्ता का अभाव है, क्यों कि सिद्ध जो हैं, सो पूर्वोक्त हेतु से अवेदी हैं / [6] क्रोध, मान, माया, लोभ, इन चारों कषायों में सिद्धपना नहीं है, क्योंकि सिद्ध अकषायी हैं, सो अकायिपना कर्म के प्रभाव से होता है / [7] मतिनान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन, पर्याय ज्ञान, केवलज्ञान, यह पांच प्रकार का ज्ञान है / अरु मति प्रज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंगनान, यह तीन अज्ञान हैं / उस में भादि के चारों ज्ञानों में अरु तीनों अज्ञानों में सिद्धपना