________________ 478. जैनतत्त्वादर्श करते हैं ? इस वास्ते श्रीमहावीर तथा श्रीपार्श्वनाथ जी की स्थापनारूप प्रतिमा को श्री महावीर पार्श्वनाथ जी कहना स्थापना सत्य है / इस में इतना विशेप है, कि जो देव शुद्ध है, उस की स्थापना भी शुद्ध है, अरु जो देव शुद्ध नहीं, उस की स्थापना भी शुद्ध नहीं / परन्तु उस स्थापना को उन का देव कहना, यह वात सत्य है / 4. नामसत्य सा किसी ने अपने पुत्र का नाम कुलवद्धन रक्खा है, अरु जिस दिन से वो पुत्र जन्मा है, उस दिन से उस कुल' का नाश होता चला जाता है, तो भी उस पुत्रको कुलवर्द्धन नाम से पुकारें, तो सत्य है / 5. रूपसत्य-सो चाहे गुणों से भ्रष्ट भी है, तो भी साधु के वेषवाले को साधु कहे, तो सत्य है। 6. प्रतीतसत्य अर्थात् अपेक्षासत्य-सो जैसे मध्यमा की अपेक्षा अनामिका को छोटी कहना / 7. व्यवहारसत्य-सो जैसे पर्वत जलता है, रसता चलता है / 8. भावसत्यसो जैसे तोते में पांच रंग हैं, तो भी तोते को हरे रंग का कहना / 6. योगसत्य-सो जैसे दण्ड के योग से दण्डी कहना / 10. उपमासत्य-सो जैसे मुख को चन्द्रवत् कहना। अव दश प्रकार के झूठ कहते हैं / 2. क्रोधनिश्रित-सो क्रोध के वश होकर जो वचन बोले, सो असत्य। 2. ऐसे ही मान के उदय से बोले, सो असत्य / 3. ऐसे माया के उदय / से वोले, सो असत्य / 4. लोभ के 5. राग के, 6. द्वेष के उदय से बोले, सो असत्य / 7. हास्य के वश से बोले / 8. भय