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________________ 477 पंचम परिच्छेद जान लेना / यह चार मन के अरु चार वचन के एवं आठ भेद हुए / सत्यवचन दश प्रकार का है। 1. जनपद सत्य-लो जिस देश में जिस वस्तुका जो नाम बोलते हैं, उस देश में वो नाम सत्य है, जैसे कोंकण देशमें पानी को पिच्छ कहते हैं, किली देश में बड़े पुरुष को वेटा कहते हैं, वा वेटे को काका कहते हैं, किसी देश में पिता को भाई, सासु को आई, इत्यादि कहते हैं, सो जनपदसत्य / 2 सम्मतसत्य-सो जैसे मेंडक, सिवाल, कमल आदि सब पंक से उत्पन्न होते हैं, तो भी पंकज शब्द करके कमल का ही ग्रहण पूर्व विद्वानों ने सम्मत किया है, किन्तु मेंडक, सिवाल नहीं। 3. स्थापनासत्य–सो जिस की प्रतिमा होवे, तिस को उस के नाम से कहना / जैसे महावीर, पार्श्वनाथ अर्हत को जो प्रतिमा होवे, उस प्रतिमा को महावीर, पार्श्वनाथ कहें, तो सत्य है / परन्तु उस को जो पत्थर कहे, सो मृपावादी है ।जैसे स्याही और कागज़ स्थापना करने से ऋग्, यजु, साम, अथर्व कहे जाते हैं; आचारांगादि अंग कहे जाते हैं; तथा काष्ठ के आकार विशेष को किवाड़ कहते हैं; तथा ईंट, पत्थर, चूने को स्तंभ कहना, पुस्तक में त्रिकोणादि चित्र लिख कर उस को आर्यावर्त, भारतवर्ष, जंबूद्वीपादि कहना; तथा स्याही की स्थापना को ककार खकार कहना / इस स्थापना से पुरुष की कछुक सिद्धि ज़रूर होती है / नहीं तो नाना प्रकार की स्थापना पुरुष किस वास्ते
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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