________________ पंचम परिच्छेद 473 छठ, 7. सीयलसातम, 8. बुधाष्टमी, 6. नोली नवमी, 10. विजय दशमी, 11. व्रत एकादशी, 12. वत्स द्वादशी, 13. धनतेरस, 14. अनन्त चौदश, 15. अमावास्या, 16. सोमवती अमावास्या, 17. रक्षाबन्धन, 18 होलो, 16. होई, 20. दसहरा, 21. सोमप्रदोष, 22. लोड़ी, 23. आदित्यवार, 24. उत्तरायण, 25. संक्रांति, 26, ग्रहण, 27. नवरात्र, 28. श्राद्ध, 26 पीपल को पानी देना, 30. गधे को माता का घोड़ा मान के पूजना, 31. गोत्राटी, 32. अन्न कूट, 33. भनेक श्मशान, कबरों का मेला, इत्यादि / 4. लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व-देव श्रीअरिहंत, धर्म का आकर, विश्वोपकार का सागर, परम पूज्य, परमेश्वर, सकल दोष रहित, शुद्ध, निरंजन; तिन की स्थापनारूप जो प्रतिमा, तिस के आगे इस लोक के पौगलिक सुख की प्राशा से मन में कल्पना करे कि जे कर मेरा यह काम हो जावेगा, तो मै बड़ो भारी पूजा करूंगा, छत्र चढ़ाऊंगा, दीपमाला की रोशनी करूंगा, रात्रि जागरण करूँगा, ऐसे भावों से वीतराग को माने, यह मिथ्यात्व है। क्योंकि जो पुरुष चिन्तामणि के दाता से काच का टुकड़ा मांगे सो बुद्धिमान नहीं है। जिसको अपने कर्मोदय का स्वरूप मालूम नहीं है, वही जीव ऐसा होता है / 5. लोकोत्तरगुरुगत मिथ्यात्व-सो जो साधु का वेष रक्खे अरु पाप निर्गुणी होवे, जिन वाणी का उत्थापक