________________ पंचम परिच्छेद 471 ही करने लगना। 3. परिणाम मिथ्यात्व-मन में विपरीत परिणाम-कदाग्रह रहे, शुद्ध शास्त्रार्थ को माने नहीं / 4 प्रदेशमिथ्यात्व-मिथ्यात्व के पुगल जो सत्ता में हैं, उन का नाम प्रदेश मिथ्यात्व है / इन चारों भेदों के भी अनेक भेद हैं, उस में कितनेक यहां पर लिखते हैं / 1. जो धर्म वीतराग सर्वज्ञ ने कहा है, तिस को अधर्म माने / 2. अरु जो हिसा प्रवृत्ति प्रमुख आश्रवमय अशुद्ध अधर्म है, उस को धर्म माने। 3 जो सत्य मार्ग है, उस को मिथ्या कहे / 4 जो विषयी जन का मार्ग है, उस को सत् मार्ग कहे / 5. जो साधु सत्तावीस गुणों करी विराजमान है, उस को असाधु कहे / 6. जो प्रारम्भ परिग्रह विषय कषाय करके भरा हुआ है, अरु उपदेश ऐसा देता है, कि जिस के सुनने से लोगों को कुवासना, कुवुद्धि उत्पन्न होवे, ऐसा गुरु पत्थर की नौका समान है। ऐसे जो अन्यलिंगी कुलिगी तिन को साधु कहे / 7 षटकाया के जीवों को अजीव माने / 8. काष्ठ, सोना आदि जो अजीव है, उन को जीव माने / 6. मूर्त पदार्थों को अमूर्त माने / 10. अमूर्त पदार्थों को मूर्त माने, यह दश भेद मिथ्यात्व के हैं। तथा दूसरे छे भेद मिथ्यात्व के हैं, तो कहते हैं। 1. लौकिक देव, 2. लौकिक गुरु, 3 लौकिक पर्व, 4 लोकोत्तर देव, 5. लोकोत्तर गुरु, 6. लोकोत्तर पर्व। 1. लौकिक देवगत मिथ्यात्व-जो देव राग द्वेष करके