________________ 464 जैनतत्त्वादर्श साथ उत्पन्न हुये हैं। यह भी मिथ्या है / क्योंकि जो वस्तु समकाल में उत्पन्न होती है, सो आपस में कारण कार्य रूप नहीं होती / और जब कर्म जीव के करे सिद्ध न हुये, तब तो कर्म का फल भी जीव नहीं भोगेगा, यह प्रत्यक्ष विरोध है। क्योंकि जीवों को कर्म का फल भोगते हुए स्पष्ट देखते हैं, परन्तु कर्म तथा जीव का उपादान कारण कोई नहीं। इस वास्ते यह तीसरा विकल्प भो मिथ्या है। चौथा विकल्प-जीव तो है, पन्तु जीव के कर्म नहीं / यह भी मिथ्या है, क्योंकि जब जीव के कर्म नहीं, तो जीव दुःख सुख कैसे भोगता है ? कर्म के विना संसार की विचित्रता कदापि न होवेगी / इस वास्ते यह चौथा विकल्प भी मिथ्या है। ___ पांचमा विकल्प-जीव अरु कर्म, यह दोनों ही नहीं। यह भी मिथ्या है, क्योंकि जब जीव ही नही, तब यह कौन कहता है, कि जोव अरु कर्म नहीं है / ऐसा कहने वाला जीव है ? कि दूसरा कोई है ? यह तो स्ववचन विरोध है, इस वास्ते यह पांचमा विकल्प भी मिथ्या है / यह पांचों मिथ्यात्व रूप हैं, अरु सत्य रूप तो छठा विकल्प है / छटा विकल्पजीव अरु कर्म, यह दोनों अनादि-अपश्चानुपूर्वी हैं। प्रश्नः-जब जीव अरु कर्म यह दोनों अनादि हैं, तब तो जीव की तरे कर्म का नाश कदापि न होना चाहिये ?