________________ पंचम परिच्छेद 463 भी काहे से करेगा ? इस वास्ते यह प्रथम विकल्प मिथ्या है। __ दूसरा विकल्प-कर्म पहले थे अरु जीव पीछे से बना है, यह भी मिथ्या है / क्योंकि जीवों के बिना वो कर्म किस ने करे ? कारण कि कर्त्ताके विना कर्म कदापि हो नहीं सकते / तथा प्रथम के कर्मों का फल भी इस जीव को नहीं होना चाहिये, क्योंकि वो कर्म जीव के करे हुए नहीं हैं / जेकर कर्म के करे विना भी कर्म फल होवे, तब तो आतप्रसंग दुषण होवेगा / तव तो विना कर्म करे ईश्वर भी कर्म फल भोगने के वास्ते नरककुंड में जा गिरेगा। तथा जीव भी पीछे काहे से बनेगा ? क्योंकि जीव का उपादान कारण कोई नहीं है। जे कर कहो कि ईश्वर जीव का उपादान कारण है, तव तो कारण के समान कार्य भी होना चाहिये। जैसा ईश्वर निर्मल, निष्पाप, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी है, तैसा ही जीव होवेगा; परन्तु ऐसा है नहीं / एवं यदि ईश्वर जीवों का उपादान कारण होवे, तब तो ईश्वर ही जीव वन कर नाना क्लेश-जन्म मरण गर्भावासादि दुखों का भोगने वाला हुआ। परन्तु ईश्वर ने यह अपने पग में आप कुहाड़ा क्यों मारा ? जो कि पूर्णानन्द पद को छोड़ कर संसार की विडंबना में क्यों फंसा ? फिर अपने आपको निष्पाप करने के वास्ते वेदादि शास्त्रों द्वारा कई तरे का तप जपादिक क्लेश करना बताया ? इस वास्ते यह दूसरा विकल्प भी मिथ्या है। तीसरा विकल्प यह है कि-जीव और कर्म दोनों एक