________________ वन्ध तत्व 462 जैनतत्त्वादर्श आचारदिनकर शास्त्र तथा श्रीरत्नशेखरसूरिकृत आचारप्रदीप तथा भगवतीसूत्र अरु उववाई शास्त्र में देख लेना। अथ वंधतत्व लिखते हैं / वंध चार प्रकार का होता है 1. प्रकृतिबंध, 2. स्थितिबंध, 3. अनुभागबन्ध तत्त्व बंध, और 4. प्रदेशबंध / जीव के प्रदेश तथा का स्वरूप कर्मपुद्गल, ये दोनों दूध और पानी की तरें परस्पर मिल जावें, उस को बंध कहते हैं। अथवा बंध नाम वंदीवान का है, जैसे बंधुआ कैद में स्वतंत्र नहीं रहता, ऐसे आत्मा भी ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वश होता हुआ स्वतंत्र नहीं रहता है / इस कर्म के बंध में के विकल्प हैं, सो कहते हैं। प्रथम विकल्प-कोई वादी कहता है, कि आत्मा प्रथम तो निर्मल था-पुण्य पाप के बंध से रहित था, यह पुण्य पाप का बंध उस को पीछे से हुआ है। परन्तु यह विकल्प मिथ्या है, क्योंकि निर्मल जीव कर्म का बंध नहीं कर सकता, और कर्म के विना संसार में उत्पन्न भी नहीं हो सकता है / जेकर निर्मल जीव कर्म का बंध करे, तब तो मोक्षस्थ जीव भी कर्म का बंध कर लेवेगा। जब मोक्षस्थ जीव को कर्मबंध हुआ, तव तो मोक्ष का ही अभाव हो जावेगा / जब मोक्ष नहीं, तव तो मोक्षोपयोगी शास्त्र अरु शास्त्रों के बनाने वाले सव मिथ्यावादी हो जावेंगे, और सभी तव तो नास्तिकमती बन जायंगे। तथा निर्मल आत्मा संसार में शरीर के अभाव से कर्म