________________ 461 पंचम परिच्छेद की विकलता को मन में न लाना, सो दर्शनपरिपह है। यह वाईस परिषह जो साधु जीते, सो संवरी-संवरवाला कहा जाता है, इन परिषहों का विस्तार देखना होवे, तो श्रीशांतिसूरिक्त उत्तराध्ययन सूत्र की बृहद्वृत्ति, तथा तत्त्वार्थ सूत्र की भाष्यवृत्ति देख लेनी। ___ अथ पांच प्रकार का चारित्र लिखते हैं / 1. सामायिक चारित्र, 2. छेदोपस्थापनिका चारित्र, 3. परिहारविशुद्धि चारित्र, 4 सूक्ष्म राय चारित्र, 5. यथाख्यात चारित्र, यह पांच प्रकार का चारित्र है / इन पांचों के धारक साधु भी जैनमत में पांच प्रकार के हैं / इस काल में प्रथम के दो प्रकार के चारित्र के धारक साधु हैं / अरु तीन चारित्र व्यवच्छेद हो गए हैं / इन पांचों का विस्तार देखना होवे तो श्रीदेवाचार्यकृत नवतत्व प्रकरण की टीका तथा भगवती अरु पनवणासूत्र की वृत्ति देख लेनी / यह सर्व मिल कर सत्तावन भेद आश्रव के रोकने वाले हैं। अथ निर्जरा तत्व लिखते हैं। निर्जरा उस को कहते हैं, जो बांधे हुये कर्मों को खेरु करे-बखेरे अर्थात् निर्जरा तत्त्व आत्मा से अलग करे, जिस से निर्जरा होती है, तिस का नाम तप है / सो तप बारह प्रकार का है, उस का स्वरूप गुरुतत्त्व के निरूपण में संक्षेप से लिख आये हैं, वहां से जान लेना / अरु जेकर विस्तार देखना होवे, तो नवतत्त्वप्रकरणवृत्ति तथा श्रीवर्द्धमानसूरिकृत