SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ११.१ ] भंगकी प्रवृत्तिके निमित्तका अभाव है । यह मार्ग द्रव्यार्थिक और 'पर्यायार्थिक इन दो नयोंके आश्रित है । इन द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयोंकेही संग्रहादिक भेद हैं. इन संग्रहादिकमेंसे संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र ये तीन नय तो अर्थनय हैं, और शब्द - सममिरूद और एवंभूत ये तीन शब्दनय हैं. समस्त वस्तुस्वरूपों को सत्ता में गर्भित करके संग्रह करनेसे संग्रहनयका विषय सत्ता है. व्यवहारनयका विषय असत्ता है क्योंकि यह नय भिन्न भिन्न सत्ताका संग्रह न करके अन्यकी अपेक्षासे असत्ताकी प्रतीति उत्पन्न करती है । ऋजुसून वर्तमानपर्यायको विषय करती है, क्योंकि अतीतका • नाश हो चुका और अनागत अभी उत्पन्नही नहीं हुआ है इसलिये 'उनके व्यवहारका अभाव है, इसप्रकार ये तीन अर्थनय हैं। इन नयोंकी अपेक्षासे संयुक्त और असंयुक्त सप्तभंग बनते हैं उनका खुलासा इसप्रकार है कि, संग्रहनयकी अपेक्षासे प्रथमभंग है १ । व्यवहारनयकी अपेक्षासे दूसरा भंग है २ । युगपत् संग्रह और व्यव - हारनयकी अपेक्षासे तीसरा भंग है ३ । क्रमसे संग्रह और व्यवहारनयकी अपेक्षासे चतुर्थ भंग है ४ । संग्रह और युगपत् संग्रह व्यवहारनयकी अपेक्षासे पंचमभंग है ५ । व्यवहार और युगपत् संग्रह व्यवहारनयकी अपेक्षासे छठा भंग है ६ । क्रमसे संग्रह व्यवहार और युगपत् संग्रह व्यवहारनयकी अपेक्षासे सातवां भंग है ७ । इसहीं प्रकार ऋजुसूत्र भी लगा लेना. पर्यायार्थिकनयके चार भेद हैं उनमें ऋजुसूत्रनयका विपय अर्थपर्याय है और शब्द समभिरूढ और एवंभूत इन तीन शब्दनयों का विषय व्यंजनपर्याय है, सो ये शब्दनय अभेद कथन और भेदकथनकी अपेक्षासे शब्द में दो प्रकारकी कल्पना करती है, जैसे शब्दनयमें पर्यायवाचक अनेक शब्दों का प्रयोग • 1
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy