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________________ [४२] सत् सत्ता अस्तित्व ये तीनों द्रव्यकी एक शक्ति विशेषके वाचक हैं। गुणगुणीकी भेदविवक्षासे द्रव्यका लक्षण सत् है । और गुण-. गुणीकी अभेदविवक्षासे द्रव्य सन्मात्र है अर्थात् स्वतः सिद्ध है, अतएव अनादिनिधन स्वसहाय और निर्विकल्प है। ऐसा नहीं माननेसे १ असतकी उत्पत्ति, २ सत्का विनाश, ३ युतसिद्धत्व, ४ परतःप्रादुर्भाव, ये चार दोष उपस्थित होत हैं । . १ असदकी उत्पत्ति माननेस द्रव्य अनंत हो जायगे और मृत्तिकाक विना भी घटकी उत्पत्ति होने लगेगी। २ सत्का विनाश माननेसे एक २ पदार्थका नाश होते २ कदाचित् सर्वाभावका प्रसङ्ग आवेगा । ३ युतसिद्धत्व माननेसे गुण और गुणीके पृथक्प्रदेशपना ठहरेगा और ऐसी अवस्थामें गुण और गुणी इन दोनोंके लक्षणके अभावका प्रसङ्ग आवेगा । और लक्षणकेविना वस्तुका अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सक्ता. इस कारण गुण और गुणी दोनोंके अभावका प्रसङ्ग आता है. भावार्थ-लक्षणके दो भेद हैं, · एक अनात्मभूत दूसरा आत्मभूत. जो लक्ष्यसे अभिन्न प्रदेशवाला होता है उसको आत्मभूत कहते हैं, जैसे अग्निंका उष्णपना । और जो लक्ष्यसे भिन्न प्रदेशवाला होता है उसको अनात्मभूत कहते हैं. जैसे पुरुषका लक्षण दण्ड. जिस प्रकार दण्ड लंबाई, गोलाई, चिकनाई आदि. लक्षणोंसे भिन्न सत्तावाला सिद्ध है । और हस्तपादादि लक्षणोंसे पुरुष भिन्न सत्तावाला सिद्ध है । इस प्रकार अग्नि और उष्णताके भिन्न २ लक्षण न होनेके कारण भिन्न २ सत्तावाले सिद्ध नहीं होसक्ते.. क्योंकि अग्निसे भिन्न उष्णता और उप्णतासे भिन्न अग्नि प्रतीति
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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