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________________ [३०] अशुद्धव्यवहारनय कहते हैं, जैसे संसारी और मुक्त जीवके भेद हैं। १ जो एक समयवर्ती सूक्ष्म अर्थपर्यायको ग्रहण करता है उसको सूक्ष्मऋजुसूत्रनय कहते हैं, जैसे सर्व शब्द क्षणिक हैं। २ अनेक समयवर्ती स्थूलपर्यायको जो ग्रहण करता है उसको स्थूलऋजुसूत्रनय कहते हैं, जैसे मनुष्यादि पर्याय अपनी आयु प्रमाण तिष्ठे हैं। १ शब्दनयका लक्षण देवसेन स्वामीने बड़े नयचक्रमें इस .प्रकार कहा है। गाथा-जो वट्टणं ण मण्णइ एयत्थे भिण्णलिंगआईणं॥ . सो सद्दणओ भणिओ णेउपुंसाइयाण जहा ॥१॥ . अहवा सिद्धे सद्दे कीरइ जं किंपि अत्थ ववहरणं ॥ तं खलु सद्दे विसयं देवो सद्देण जह देओं ॥२॥ इन दोनों गाथाओंका अभिप्राय यह है कि, एक पदार्थमें भिन्न । लिंगादिककी स्थितिको जो नहीं मानता है उसको शब्द नय कहते. . हैं. भावार्थ-स्त्री, पुरुष, नपुंसकलिंङ्ग, आदि शब्दसे एक वचन, द्विवचन, बहुवचन, संख्या, काल, कारक, पुरुष, उपसर्गका ग्रहण · करना, एकही पदार्थके वाचक अनेक शब्द होते हैं और उनमें लिंङ्ग संख्यादिकका विरोध होता है, जैसे पुष्य, तारका, नक्षत्र, ये तीनों लिङ्गके शब्द एकही ज्योतिष्कविमानके वाचक हैं, सो इनमें परस्पर व्यभिचार हुआ. परन्तु शब्दनयं इस व्यभिचारको नहीं मानता है. अथवा व्याकरणसे भिन्न लिङ्गादि युक्त जो शब्द सिद्ध हैं वे जो कुछ . अर्थ व्यवहरण करै सोही शब्द नयका विषय है। अर्थात् जो शब्दका . वाच्य है उसही खरूप पदार्थको भेद रूप मानना शब्दनयका विषय ..
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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