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________________ [ २९ ] १ जहां वर्तमानका आरोपण होता है, उसको भूतनगम कहते हैं । जैसे,—आज दोरीसयके दिन महावीर भगवान् मोक्षको गये । २. जहां भाव भूतवत् कथन होना है उसको भावीनैगमनय कहते है। जैसे अनको सिद्ध कहना | ३. जिस कार्यका प्रारंभ कर दिया जाता है और उसमेंसे एक देश तय्यार हुआ हो अथवा बिलकुल तय्यार नहीं हुआ हो उसको नय्यार हुआ ऐसा कहना वर्तमान नैगमनयका विषय है । जैसे कोई पुरुष रसोई करनेके निर्मित्त, भातके लिये चांवल साफ कर रहा है अथवा किसीने भाव बनानेकेवास्ते चांवल अग्निपर चढ़ा दिये हैं परन्तु अभी भात तय्यार नहीं हुआ है, किसीने आनकर पूछा कि नाय कहिये आज क्या बनाया? तब वह उत्तर देता - " भात बनाया I *! १ सत् सामान्यकी अपेक्षासे समल इव्योंकी जो एक रूप ग्रहण करता है उसकी सामान्यसग्रहनय कहते हैं, जैसे सर्व प्य सत्की अपेक्षासे परस्पर अविरुद्ध है । २ जो एक जाति विशेषकी अपेक्षासे अनेक पदार्थोंको एक रूप ग्रहण करता है उसको विशेषसङ्ग्रहनय कहते हैं, जैसे चेतनाकी अपेक्षाने समस्त जीव एक है । १ जो सामान्य सङ्ग्रहके विषयको भेद रूप ग्रहण करता है उसको शुद्धव्यवहारनय कहते है-जैसे द्रव्यके दो भेद हैं, जीव और अजीव । २ जो विशेष सङ्ग्रहके विषयको भेदरूप, ग्रहण करता है उसको.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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