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________________ [१८] 9 साधनका साहचर्य है यहां दोनोंही एक साथ रहते हैं तथा यहांपर दोनोंही एक साथ नहीं रहते ऐसी वादी तथा प्रतिवादी दोनोंकी बुद्धिका साम्य हो जाय, दोनों इस बातको मानलें, उसे दृष्टान्त कहते हैं, इस दृष्टान्तके कहनेहीको उदाहरण. कहते हैं. जैसे धूम के द्वारा वह्निकी सिद्धि करनेके लिये रसोईघर तथा तालाब आदि का कहना । दृष्टान्त दो तरहके हैं - एक अन्वय दृष्टान्त, दूसरा व्यतिरेक दृष्टान्त। जहां अन्वय व्याप्ति यानी साधनकी मौजूदगी में साध्य की मौजूदगी दिखाई जाय उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं - जैसे धूमसे वन्हिकी सिद्धि करनेके लिये रसोईघर, यहां धूमकी मौजूदगी में अग्निकी मौजूदगी दिखाई गई है। जहां व्यतिरेक व्याप्ति यानी साध्यकी गैरमौजूदगीमें साधनकी गैरमौजूदगी दिखाई जाय उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं, जैसे धूमसे वन्हिकी सिद्धि करनेके लिये तालाब, यहां अग्निकी गैरमौजूदगी में धूमकी गैरमौजूदगी दिखाई गई है । इस तरह दृष्टान्तोंको द्विविध होनेसे इनके कहने वाले वचनों (उदाहरणों) के दो भेद (साधम्र्योदाहरण, वैधम्र्योदाहरण) हैं । साध्यकी व्याप्ति विशिष्ट हेतुके रहनेकी अपेक्षा दृष्टान्त और पक्षमें समानता दिखलानेवालेको उपनय कहते हैं; जैसे " तथाचायम् ।” जैसे कि रसोईघर धूमवाला है उसही तरह यह पर्वतभी धूमवाला है । हेतुको दिखाते हुए प्रतिज्ञांके दुहरानेको - हेतुकी सामर्थ्य से नतीजेके निकालनेको निगमन कहते हैं; जैसे कि " तस्मादग्निमान् " धूमवाला होनेकी वजहसे अग्निवाला है । इस प्रकार अपने आप निश्चय किये हुए हेतुसे पैदा होनेवाले - साध्यके ज्ञानको स्वार्थानुमान और दूसरेके उपदेशसे जाने हुएसे पैदा होनेवाले - साध्य के ज्ञानको परार्थानुमान कहते हैं । जिस हेतुसे + " 1 <
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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