SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१९] मायका सान होता है वह यदि मुचा--निदोष (साध्यंक विना माने मार नगरक्षणमे विशिष्ट ) है तब उससे पैदा होनकला मायका ज्ञान यानी अनुगान सदनुमान बोला जायगा और गति मिथ्या सदोष-माध्याविनाभाविच म्प हेनुकं लक्षणसे गत है नत्र उनले पैदा होनेवाला साध्यका सान अनुमानाभास बोला जायगा । न कि अनुमान, इसलिये सच्चे और मिथ्या हतुका निरूपण किया जाता है । संग-निर्दोर तुहीको हतु कहते हैं और मिथ्या सदोष मनुशीवाभारत काते है । " अन्यथानुपपत्यक लक्षणं लिंगमभ्यते।" जी सायंका रिना न पाया जाय उसे सदतु फाईन है, और जिन हेतुमें ऊपर का हुआ लक्षण न पाया जाय परन्तु ची आदि वित्तियां द्वारा हेतु मरीया माद्रम हो उसे हल्लामाम सरन है । उमंक यधपि बहुत भेद हैं परन्तु मूल चार भेद है१, अमिद २ विरुद्ध, ३ अनेकान्निक (व्यभिचारी), ४ अकिञ्चित्कर पन में अन्य लाभासामा यथासम्भर अंतर्भाव हो जाता है। निन हेतु स्वरूपंक सद्भावका अनिश्चय अथवा संदेह हो उसे असिद्ध हवाभास करते हैं, जैसे " शब्द नित्य है क्योंकि नेत्रका विषय " यहां पर " नत्र का विषय " यह हेतु है; यह स्वरूपही से शब्दमें नहीं रहता, कारण कि शल्द तो कर्णका विषय है नेत्रका नहीं है इसलिये “ नेत्रका विषय " यह हेतु स्वरूपासिद्ध लाभास है. इसही तरह जहां धूम और बाप्प (वाफ ) का निश्चय 'नहीं, वहांपर किसीने कहा "यहां अग्नि है कारण कि यहां धूम है." अब यहापर कहा गया जो धूग हेतु है वह संदिग्धासिद्ध हेत्वाभास है, कारण कि धूमक (जिसको कि हेतु बनाया है ) स्वरूप संदेह है। साध्यसे विरुद्ध पदार्थके साथ जिस हेतु की व्याप्ति हो
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy