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________________ [१४] : एक तरफा ही व्याप्ति रही, इस ही को विटम व्याप्ति कहते हैं । इन दोनों ही तरहकी व्याप्तिका जिससे ज्ञान हो उसको तर्क कहते हैं । भावार्थ जो साध्य साधन सम्बन्धी अज्ञानके हटाने में साधकतम कारण हो उसको तर्क ज्ञान कहते हैं । साधन (जो साध्यके अभाव में न रहता हो ) से साध्य - जिंसको वादी लोग सिद्ध करना चाहते हों, क्योंकि ऐसा न होनेसे अतिप्रसंग ही हो जायगा । अर्थात् " कहे खेतकी सुनै खलियानकी" जैसी हालत हो जायगी। वादी तो चाहता है कि यहाँ पर अग्निकी सिद्धि की जांय परन्तु प्रतिवादी उससे उल्टे ही ईंट पत्थरकी सिद्धि कर रहा है, तो वह ईंट पत्थर साध्य नहीं कहे जा सकते, क्योंकि वादी उनको सिद्ध ही नहीं कराना चाहता है । और जो यथार्थमें प्रत्यक्षादिक प्रमाणसे - बाधित न हो, क्योंकि ऐसा न होनेसे वह्निमें प्रत्यक्षसे वाधित ठंठापन भी साध्य होने लगेगा । और जिसमें संदेहादि पैदा हो रहे हों, क्योंकि ऐसा न होने से अर्थात् जिसमें किसी प्रकारका संदेह वगैरह नहीं है, फिर भी यदि वह साध्य कहलाने लगें, तब तो अनुमान ज्ञान व्यर्थ ही पड़ जायगा, क्योंकि जिसमें शक ( संदेह ) ही नहीं उसके सिद्ध करनेके लिये अनुमानकी क्या आवश्यकता ! संदेहादिकके दूर करनेके लिये ही तो अनुमान किया जाता था । इसलिये जिसको वादी लोग सिद्ध करना चाहते हों और जिसमें वर्तमान कालमें शक पैदा हो रहा हो, परन्तु उसके वास्तव होने में कोई प्रत्यक्षादि प्रमाणसे वाघा न आती हो, उसंहीको साध्य कहते हैं । उसके ज्ञानको अनुमान कहते हैं । नं कि केवल सावनके ज्ञानको, कारण कि जिसका ज्ञानं होता है उस ज्ञानसे उस हा अज्ञानं हटता है न किं दूसरेका, इसलियें साघनके ज्ञान -
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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