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________________ [१३] सिद्धि की जाय ) के होने तथा साध्यके न होने पर साधनके भी न होनको अविनाभाव सम्बन्ध (अ-न, विना-साध्यं विना, भावःभवनम् हतारितिशेपः अर्थात् साध्यंक विना हेतुके न होनेको अविनाभाव कहते हैं ) कहते हैं । इसहीका नाम व्याप्ति है । यह व्याप्ति दो तरह का है, एक समन्याप्ति, दूसरी विपमन्याप्ति । दुतरफा व्याप्तिको अर्थात जिन दो पदार्थोंमें दोनों तरफसे अन्चय ( होने पर होना ) व्यतिरक ( न होने पर न होना) पाया जाय उसे समव्याप्ति कहते हैं जैसे ज्ञान और आत्मामें जहाँ २ ज्ञान होता है यहाँ २ आत्मत्व-जीवन जरूर होता है, इस ही तरह जहाँ आत्मत्वजीवत्र होता है वहाँ २ ज्ञान भी जरूर होता है और जहाँ २ ज्ञान नहीं होता वहाँ २ आत्मत्व भी नहीं होता, इस ही तरह जहाँ २ आमिल नहीं होता यहाँ २ ज्ञान भी नहीं होता, इसलिये यहाँ नानका आत्मत्यके साथ और आत्मत्वका ज्ञानके साथ अन्वयव्यतिरेक होनेसे समत्र्याप्ति है। एक तरफा व्याप्ति अर्थात् अविनाभूत जिन दो पदार्थोमें एक तरफसे व्याप्ति होती है, उसको विषम. व्याप्ति कहते हैं । जैम धूम और अग्निमें, जहाँ २ धूम होता है वहाँ २ अग्नि जरूर होती और जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ धूम भी नहीं होता, इस तरह धूमकी तरफसे तो अग्निके साथ अन्वय व्यतिरेक पाया जाता है, परन्तु जहाँ २ अग्नि होती है वहाँ २ धूम भी होता है तथा जहाँ २ धूम नहीं होता वहाँ २ अग्नि भी नहीं होती, इस. तरह अग्निकी तरफंसे धूमके साथ अन्वयव्यतिरेक नहीं पाया जाता है । कारण कि अंगारेमें तया तपाये हुए लोहेके गोलेमें अग्नि तो है परन्तु धूम नहीं इस लिये अन्वय व्यभिचार (होने पर न होना) तथा व्यतिरेक व्यभिचार (न होने पर होना) आजानेसे.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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