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वह प्रत्यक्ष ज्ञान है और जिस ज्ञान वह न पाई जाय वह परोक्ष ज्ञान है । परोक्षज्ञानके स्मृति १ प्रत्यभिज्ञान २ तर्क ३. अनुमान ४ और आगम ५.ऐसे पांच भेद हैं। जिस किसी पदार्थको धारगात्मक. ज्ञानसे पहले अच्छी तरह जान लिया था, उसी .पदार्थके "" वह पदार्थ " इस प्रकार याद करनेको स्मृति कहते हैं । जबतक पदार्थका अवग्रह, ईहा, अवाय ज्ञान हो भी जाता है, परन्तु, धारणा ज्ञान नहीं होता तवतक उस पदार्थमें स्मृति ज्ञानकी उत्पत्ति नहीं होती है । अनुभव और स्मरण यह दोनों ज्ञान जिसमें कारण. हों, ऐसे जोडरूप ज्ञानको प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । इस प्रत्यभिज्ञानके तीन भेद हैं । एकत्व प्रत्यभिज्ञान १. सादृश्य प्रत्यभिज्ञान २ वैसादृश्य प्रत्यभिज्ञान ३ जो स्मृति और प्रत्यक्षके विषयभूत पदार्थोंकी दो दशाओंमें एकता दिखलाते हुए " यह वही है जिसे पहले देखा • था" ऐसे आकारका ज्ञान होता है उसे एकत्वप्रत्यभिज्ञान कहते हैं । जो स्मृति और प्रत्यक्षके विषयभूत, पूर्वमें जाने हुए तथा उत्तरकालमें जाने हुए दो पदार्थोंमें सदृशता दिखलाते हुए ." यह उसके । .सदृश है जिसे पहले देखा था ” इस आकारवाला जोड़ रूप. ज्ञान होता है, उसे सादृश्यप्रत्यभिज्ञान कहते हैं। जो स्मृति और प्रत्यक्षके विषयभूत पूर्वकालमें अनुभव किये .. हुए तथा उत्तरकालमें जाने हुए दो पदार्थोंमें, . विसदृशता-विलक्षणता दिखलाते हुए यह उससे विलक्षण है जिसको पहले देखा. व जाना था.' इस आकारका - ज्ञान होता है, उसको वैसादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । इस , ही तरह
और भी अनेक भेद जान लेना चाहिये। . . . · · व्याप्तिके ज्ञानको तर्क कहते हैं । अर्थात् साधन .(.जिसके "द्वारा साध्यकी सिद्धि की जाती है..): के होने. पर. साध्य . ( जिसकी