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________________ [५] कहा है, और जो जाननमें सहायता पहुंचाते हुए भी साधकतम नहीं होते, वे भी प्रमाण नहीं हो सकते, जैसे सन्निकर्यादि । यद्यपि सन्निकर्ष कहिये इंद्रियोंका पदार्थसे मिलना, किन्हीं किन्ही इंद्रियोंके द्वारा पैदा होनेवाले ज्ञानकी उत्पत्तिमें मदद पहुंचाता है, परन्तु सन्निकर्ष होनेके अनन्तर ही, तद्विषयक अज्ञानकी निवृत्ति नहीं हो सकती, कारण कि वह अचेतन है, जो स्वयं अचेतन है, वह दूसरेके अज्ञानको कैसे हटा सकता है। क्योंकि ऐसा नियम है कि जो जिसका विरोधी होता है, वही उसको हटा सकता है । देखा जाता है कि अंधकारको दूर करनेके लिये, प्रकाशमय दीपककी आवश्यकता होती है, और उससे ( अंधकारके विरोधी प्रकाशमय दीपक से) अंधकार हट सकता है, न कि कागज कलम दावातसे । कारण कि कागज कलम दारात ये कोई अंधकारके विनाशक नहीं हैं। ये बात दूसरी है कि दावात और कलमके द्वारा कागजके ऊपर लिखे हुए हुक्मनामासे दीपक आ सकता और अंधकार दूर हो सकता है, परन्तु वे अंधकारके हटने, वा प्रकाश होनेके साधकतम कारण न होनेकी वजहसे, अंधकार विनाशक नहीं कहे जा सकते । ठीक इस ही तरह, यद्यपि सन्निकर्य, ज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण है। परन्तु बह अज्ञानके हटनेमें साधकतम करण न होनेकी वजहसे, प्रमाण नहीं कहा जा सकता, इस ही तरह इंद्रियवृत्ति आदि भी प्रमाण नहीं हो सकते, कारण कि वे स्वयं अचेतन होनेकी वजहसे, अज्ञानकी निवृतिरूपप्रमितिमें, कारण नहीं हो सकते हैं। ऐसा होनेसे (प्रमीयतेऽ नेन-प्रमितिक्रियां प्रतियकरणंतत्प्रमाणं अर्थात् जो प्रमितिक्रियाके प्रति करण हो, उसे प्रमाण कहते हैं) प्रमाण नहीं हो सकता। " रक्तेन दूपितं वस्त्रं न हि रक्तेन शुद्धयति" जो कपड़ा . लोहूसे
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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