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________________ इस अप्रिय कथाके उल्लेख करनेका कारण यह है कि पण्डितजी इस निरन्तरकी यातनाको कलहको-उपद्वको बड़ी ही धीरतासे विना उद्वेगके. मोगते थे और अपने कर्तव्यमें जरा भी शिथिलता नहीं आने देते थे और यह पण्डितजीका अनन्यसाधारण गुण था। मुकरातकी स्त्री सिसियानी हुई बेटी थी; मुफरात फई दिनके बाद घर आये। खाने पानी वस्तुओका इन्तजाम किये बिना ही वे घरसे चले गये थे और काही लोकोपकारी व्याख्यानादि देने में लगकर घरकी चिन्ता भूल गये थे। पहले तो श्रीमतीने धात सा गर्जन तर्जन किया, पर जब उसका कोई भी फल नहीं हुआ. तब उसका वेग निःसीम हो गया और उसने एक घड़ा वर्फ जैसे पानीका उस शीतकालमें सुकरातके ऊपर आंग दिया ! सुकरातने स करके कह दिया कि गर्जनके बाद वर्षण तो स्वभाविक ही है ! पण्डित के यहाँ इस प्रकारकी घटनायें-ययपि वे लिसन प्रतनी मनोरंजक नहीं हैं-अफसर हुआ करती थी और पण्डितजी उन्हें नकरातके ही समान चुपचाप सहन किया करते थे। विद्यालयसे प्रेम । विद्यालयसे पण्डितनीको बहुत मोह हो गया था। उसे ही वे अपना सर्वस्व समझते थे। पण्डितजी बड़े ही अभिमानी थे। किसीसे एक पैसाकी भी याचना करना उनके स्वभावके विरुद्ध था | शुरू शुरूमेंजव में सिद्धान्तविद्यालयका मंत्री था---पण्डितजी विद्यालय के लिए समाओंमें सहायता माँगनेके सरस्त विरोधी थे, पर पीछे पण्डितजीका वह सख्त अभिमान विद्यालयके वात्सल्यकी धारामें गल गया और उसके लिए मिक्षां देहि ' कहने में भी उन्हें संकोच नहीं होने लगा। विविध बातें। पण्डितजी बटुत सीधे और भोले थे, उनके भोलेपनसे धूर्त लोग अकसर लाभ उठाया करते थे। एकाग्रताका उनको बड़ा अभ्यास था। चाहे जैसे कोलाहल और अशान्तिके स्थानमें वे घण्टोतक विचारोंमें
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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