SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लीन रह सकते थे. । स्मरणशक्ति भी उनकी बड़ी. विलक्षण थी। बरसोंकी वातोंको वे अक्षरशः याद रख सकते.थे। विदेशी रीतिरि-- वाजोंसे उन्हें बहुत अरुचि थी । जब तक कोई बहुत जरूरी काम न.. पड़ता था, तब तक वे अँगरेजीका उपयोग नहीं करते.. थे। हिन्दीसे उन्हें बहुत ही प्रेम था। अन्य पण्डितोंके समान वे इसे तुच्छ दृष्टिसे. नहीं देखते थे। उनके विद्यालयकी लायब्रेरीमें हिन्दीकी अच्छी अच्छी पुस्तकोंका संग्रह . है । पण्डितजी बड़े देशभक्त थे । 'स्वदेशी' के आन्दोलनके समय आपने जैनमित्रके द्वारा जैनसमाजमें अच्छी जागृति उत्पन्न की थी। ___ मनुष्यके स्वभावका और चरित्रका अध्ययन करना बहुत कठिन है और जबतक यह न किया जाय, तबतक किसी पुरुषका चरित नहीं लिखा जा सकता। पण्डितजीके सहवासमें थोड़े समयतक रहकर हमने उनके । विषयमें जो कुछ जाना था, उसीको यहाँ सिलसिलेसे लिख दिया है। जैनहितैषीसे उद्धृत । पंडितजीका स्वर्गवास चैत्र सुदी ५ सं० १९७४ में हुआ, जिससे जैन. समाजका एक ऐसा स्थान खाली हो गयो; जिसकी पूर्ति आजतक नहीं
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy