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________________ . . . चारित्र। पण्डितजीका चारित्र बड़ा ही उज्ज्वल था । इस विषयमें वे पण्डितमण्डलीमें आदितीय थे। उन्होंने अपने चारित्रसे दिखला दिया है, कि संसारमें व्यापार भी सत्य और अचौर्यव्रतको दृढ़ रखकर किया जा सकता . है । यद्यपि इन दो व्रतोंके कारण उन्हें बार बार असफलतायें हुई, फिर भी उन्होंने इन व्रतोंको मरणपर्यंत अखण्ड रक्खा । बड़ी बड़ी कड़ी परीक्षाओंमें भी आप इन व्रतोंसे नहीं डिगे। एक बार मण्डीमें आग लगी और उसमें आपका तथा दूसरे व्यापारियोंका माल जल गया। मालंका. बीमा बिका हुआ था। दूसरे लोगोंने बीमा कम्पनियोंसे इस समय खूब रुपये वसूल किये, जितना माल था, उससे भी अधिकका बतला दिया। आपसे भी कहा गया । आप भी इस समय अच्छी कमाई कर सकते थे. पर आपने एक कौड़ी भी आधिक नहीं ली। रेलवे और पोस्टाफिसका यदि एक पैसा भी आपके यहाँ भूलसे अधिक आ जाता था, तो उसे. : वापस दिये विना आपको चैन न पड़ती थी। रिश्वत देनेका आपको त्यागः . था। इसके कारण आपको कभी कभी बड़ा कष्ट उठाना पड़ता था, पर । आप उसे चुपचाप सह लेते थे। ___ पण्डितजीको कोई भी व्यसन न था ।साने पानेकी शुद्धता पर आपको अत्यधिक खयाल था । खाने पीनेकी.अनेक वस्तुयें आपने छोड़ रक्सी. थीं। इस विषयमें आपका व्यवहार बिल्कुल पुराने ढंगका था। रहने सहन. आपकी बहुत सादी थी। कपड़े आप इतने मामूली पहनते थे, उनकी और आपका इतना कम ध्यान रहता था कि अपरिचित लोग आपको.. कठिनाईसे पहचान सकते थे। . . ___ धर्मकार्योंके द्वारा आपने अपने जीवनमें कभी एक पैसा भी नहीं लिया। यहाँतक कि इसके कारण आप अपने प्रेमियोंको दुखी-तक कर दिया करते. थे, पर भेट या बिदाई तो क्या एक दुपट्टा या कपड़ेका टुकड़ा भी ग्रहण नहीं करते थे । हाँ! जो कोई बुलाता था उससे. आने जानेका किराया ले. .. लेते थे।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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