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________________ [१७५] जम्बूद्वीपसे दूनी रचना धातुकीखंड और पुकारार्धद्वीपमें है। इसका खुलासा इस प्रकार है कि, धातुकीखण्ड और पुष्कराई इन दोनों द्वोपोंकी पूर्व और पश्चिम दिशामें दो दो मेरु हैं अर्थात् दो मेरु धातुकीखण्डमें और पुष्करार्द्धमें हैं । जिसप्रकार क्षेत्र कुलाचल द्रह कमल और नदी आदिकका कथन जम्बूद्वीपमें है, उतनाही उतना प्रत्येक मेहका समझना | भावार्थ-जम्बूद्वीपसे दूनी रचना धातुकीखण्डकी और धातुकीखंडके समान रचना पुष्करार्द्धकी है । इनकी लम्बाई चौडाई ऊंचाई आदिकका कथन विस्तारभयसे यहां नहीं लिखा है । जिन्हें सविस्तर जाननेकी इच्छा होय, उन्हें त्रैलोक्यसार ग्रन्यसे जानना चाहिये। मनुष्यलोकके भीतर पंद्रह कर्मभूमि और तीस भोगभूमि हैं। भावार्थ-एक एक मेस्संबंधी भरत, ऐरावत, तथा देवकुरु और उत्तरकुरुको छोडकर विदेह, इसप्रकार तीन तीन तो कर्मभूमि और हैमवत, हरि, देवकुरू, उत्तरकुरु, रम्यक और हैरण्यवत ये छह छह भोगभूमि हैं । पांचों मेस्की मिलकर १५ कर्मभूमि और ३० भोगभूमि हैं । जहां असिनसिकृप्यादि पट्कर्मको प्रवृत्ति हो, उसको कर्मभूमि कहते हैं और जहां कल्पवृक्षोंद्वारा भोगोंकी प्राप्ति हो, उसको भोगभूमि कहते हैं । भोगभूमिके तीन भेद हैं-१ उत्कृष्ट, २ मध्यम और ३ जघन्य । हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रोंमें जघन्य भोगभूमि हैं । हरि और रम्यक क्षेत्रोंमें मध्यम भोगभूमि और देवकुरु तया उत्तरकुरुमें उत्कृष्ट भोगभूमि है । मनुष्यलोकसे बाहर सर्वत्रं जधन्य भोगभूमिकीसी रचना है किन्तु अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीपके उत्तरार्द्धमें तया समस्त स्वयंभूरमण समुद्रमें तथा चारों कोनोंकी पृथिवियोंमें कर्मभूमिकोसी.रचना है । वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय और चतुरि
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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