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________________ [ १७४ ] चावीस हजार योजन और उत्तर दक्षिणदिशामें ढाई ढाई सौ योजन चौड़ा है। पृथ्वीसे पांचसौ योजन ऊंचा चलकर सुमेरुकी चारोंतरफ प्रथम कंटनीपर पांचसौ योजन चौड़ा नंदनवन है । नंदनवनसे बासठ हजार पांचसौ योजन ऊंचा चलकर सुमेरुकी चारों तरफ द्वितीय कटनीपर पांचसौ योजन चौडा सौमनस-वन है । सौमनसवनसे छत्तीस हजार योजन ऊंचा चलकर सुमेरुके चारों तरफ तीसरी कटनीपर चारसौ चौरानवे योजन चौडा पाण्डुकवन है मेरुकी चारों विदिशाओं में चार गजदंत पर्वत हैं । दक्षिण और उत्तर भद्रशाल तथा निषध और नीलपर्वतके बीचमें देवकुरु और उत्तरकुरु हैं | मेरुका पूर्वदिशामें पूर्वविदेह और पश्चिमदिशामें पश्चिमविदेह है । पूर्वविदेहके बीच में होकर शीता और पश्चिमविदेहमें होकर शीतोदा नदी पूर्व और पश्चिमसमुद्रको गईं हैं । इसप्रकार दोनों नदियोंके दक्षिण और उत्तर तटकी अपेक्षासे विदेहके चार भाग हैं । इन चारों भागोंमेंसे प्रत्येक भागमें आठ आठ देश हैं । इन आठ देशोंका विभाग करनेवाले वक्षारपर्वत तथा विभंगा नदीं हैं । भावार्थ - १ पूर्व भद्रशालवनकी वेदी, २ वक्षार, ३ विभंगा, ४ वक्षार, ५ विभंगा, ६ वक्षार, ७ विभंगा, ८ वक्षार और देवारण्यकी वेदी इसप्रकार नव सीमाओं के बीचबीचमें आठआठ देश हैं। इसप्रकार विदेहक्षेत्र में ३२ देश हैं । भरत और ऐरावत क्षेत्रके वीचमें विजयार्द्ध पर्वत है । इन पर्वतोंमें दो दो गुफा हैं, जिनमें होकर गंगा सिन्धु और रक्ता रक्तोदा नदी निकली हैं । इस प्रकार भरत और ऐरावतके छह छह खंड हो गये हैं । इनमेंसे एक एक आर्यखंड और पांच पांच म्लेच्छखण्ड हैं ।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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