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________________ [ १७३ ] २० और १० योजन है । इन पद्मादिक सब कुण्डों में एक एक कमल है, जिनकी ऊंचाई तथा चौड़ाई १/२/४ | ४ | २ और १ योजन प्रमाण है । इन कमलोंमें पल्योपम आयुवाली श्री, ही, धृति, कीर्ति,. बुद्धि और लक्ष्मी जातिकी देवियां सामानिक और पारिपद् जातिके देवोंसहित क्रमसे निवास करती हैं । इन भरतादि सात क्षेत्रों में एक एकमें दो दोके क्रमसे गंगा सिन्धु रोहित् रोहितात्या हरित् हरिकान्ता शीता शीतोदा नारी नरकान्ता सुवर्णकूला रूप्यकूला रक्ता और रक्तोदा ये १४ चौदह नदी हैं।. इन सात युगलोंमेंसे गंगादिक पहली पहली नदियां पूर्वसमुद्रमें और सिन्ध्यादिक पिछली पिछली नदियां पश्चिमसमुद्र में प्रवेश करती हैं ।' गंगा सिन्धु रोहितास्या ये तीन नदी पद्मकुण्डमेंसे निकली हैं । रक्ता रक्तोदा और सुवर्णकृला पुण्डरीककुण्डमेंसे निकली हैं । शेष चार कुण्डोमसे शेष आठ नदियां निकली हैं, अर्थात् एक एक कुण्डमेंसे एक एक पूर्वगामिनी और एक एक पश्चिमगामिनी इस प्रकार दो दो नदियां निकली हैं । गंगा सिन्धु इन दो महानदियोंका परिवार चौदह चौदह हजार क्षुल्लक नदियोंका है । रोहित रोहितास्या प्रत्येकका परिवार अहाईस अठ्ठाईस हजार नदियां हैं । इसही प्रकार शीता शीतोदापर्यंत दूना दूना और आगे आधा आधा परिवारनदि-योंका प्रमाण है । विदेहक्षेत्र के बीचोंबीच सुमेरु पर्वत है । सुमेरु पर्वतकी एक हजार योजन भूमिमें जड़ है । तथा निन्यानवे हजार योजन भूमिके ऊपर ऊंचाई है और चालीस योजनकी चूलिका है । यह सुमेरु पर्वत गोलाकार भूमिपर दश हजार योजन चौड़ा तथा ऊपर एक हजार योजन चौड़ा है सुमेरु पर्वतके चारों तरफ भूमिपर भावन है । यह भद्रशालवन पूर्व और पश्चिमदिशामें बावीस.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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