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[१६८] हैं । सातों पृथिवियोंके इंद्रक श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक नरकोंका जोड़ चौरासी लाख है । इन ही नरकोंमें नारकी जीवोंका निवास है। . पहली पृथ्वीके पहले पटलमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई तीन हाथ है, द्वितीयादिक पटलोंमें क्रमस वृद्धि होकर पहली पृथ्वकि तेरहवें पटलमें सात धनुष और सवा तीन हाथकी ऊंचाई. है । पहली पृथ्वीमें जो उत्कृष्ट उंचाई है, उससे किंचित् अधिक दूसरी पृथ्वीके नारकियोंकी जघन्य उंचाई है । इसही प्रकार द्वितीयादिक पृथिवियोंमें जो उत्कृष्ट उत्सेध ( उंचाई ) है, वही किंचित अधिक सहित तृतीयादिक पृथिवियोंमें जघन्य देहोत्सेध ( शरीकी उंचाई ) है। पहली पृथ्वीके अंतिम इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट उत्सेध है, द्वितीय पृथ्वीके अंतिम इन्द्रकमें उससे दुगना उत्सेध है और इसही क्रमस दुगना करते करते सातवीं पृथ्वीमें नारकियोंके शरीरकी उंचाई पांचसौ धनुष है । पहली पृथ्वीमें नारकियोंकी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है, उत्कृष्ट आयु एक सागर है । प्रथमादिक पृथिवियोंसे जो उत्कृष्ट आयु है वही किंचित् अधिक सहित द्वितीयादिक पृथिवियोंमें जघन्य आयु है। द्वितीयादिक पृथिवियोंमें क्रमसे तीन, सात, दश, सत्रह, बावीस और तेतीस सागरकी उत्कृष्ट . आयु है।
नारकी, मरण करके नरक और देवगतिमें, नहीं उपजते, किंतु मनुष्य और तिर्यंच गतिमें ही उपजते हैं और इसही प्रकार मनुष्य
और तिर्यंच ही मरकर नरकगतिमें उपजते हैं। देवगतिसे मरण करके कोई जीव नरकमें उत्पन्न नहीं होते । असंज्ञी पंचेन्द्री (मनरहित ) जीव मरकर. पहले नरक तक ही जाते हैं आगे नहीं जाते । सरीसृप.. जातिके.जीव दूसरी . पृथ्वी तक ही जाते हैं, पक्षी