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________________ [ १६७] शेष नव प्रकारके भवनवासी देव तथा राक्षसभेदको छोड़कर शेष सप्त प्रकारके व्यन्तरदेव निवास करते हैं । पंकभागमें असुरकुमार और राक्षसोंके निवासस्थान हैं और अब्बहुलभाग तथा शेषकी छह पृथित्रियोंमें नारकियोंका निवास है । नारकियोंकी निवासरूप सातो पृथिवियोंमें भूमिमें तलघरोंकी तहर ४९ पटल हैं । भावार्थ:- पहली पृथ्वीके अब्बहुलभागमें १३, दूसरी पृथ्वीमें ११, तीसरी पृथ्वीमें ९, चौथी में ७, पांचवीं में ५, छट्ठी में ३, और सातवी पृथ्वीमें एक पटल है । ये पटल इन भूमियोंके ऊपरनीचके एक एक हजार योजन छोड़कर समान अंतरपर स्थित हैं । अम्बहुलभागके १३ पटलोंमें से पहले पटलका नाम सीमन्तक पटल है, इस सीमंतक पटलमें सबके मध्य में मनुष्य लोकके समान ४५ लक्ष योजन चौड़ा गोल ( कूपवत् ) इन्द्रकबिल ( नरक ) है । चारों दिशाओंमें असंख्यात योजन चौड़े उनचास उनचास श्रेणिवद्धनरक हैं और चारों विदिशाओं में अडतालीस अडतालीस असंख्यात योजन चौडे श्रेणीवद्ध नरक हैं और दिशा विदिशाओंके वीचमें प्रकीर्णक ( फुटकर ) नरक हैं। जिनमें कोई संख्यात योजन चौड़े हैं और कोई असंख्यात योजन चौडे हैं । प्रत्येक पटलके प्रतिश्रेणिबद्धनरकोंकी संख्या में एक एक कमती होता जाता है । और अंत उनचासवें पटलमें चारों दिशाओंमें एक एक श्रेणीबद्धनरक है तथा विदिशाओंमें एक भी श्रेणीवद्धनरक नहीं है और न कोई प्रकीर्णक नरक है । प्रथम पृथ्वीके अब्बहुल भागमें तीस लाख नरक हैं, दूसरी पृथ्वीमें पच्चीस लाख, तीसरी पृथ्वीमें पंद्रह लाख, चौथी पृथ्वीमें दश लाख, पांचवीं पृथ्वीमें तीन लाख, छुट्टी पृथ्वी में पांच कम एक लाख और सातवी पृथ्वीमें पांच नरक 1
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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