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• नीसरे नरक तक ही जाते हैं, सर्प चौथे नरक तक ही जाते हैं, सिंह पांचवें नरक तक ही जाते हैं, स्त्री हट्टे नरक तक जाती है और कर्मभूमिके मनुष्य और मत्स्य सातवें नरक तक जाते हैं । · भोगभूमिके जीव नरकोंको नहीं जाते किंन्तु देवही होते हैं । यदि कोई जीव निरंतर नरकको जाय, तो पहले नरक में आठवा वार तक, दूसरे नरकमें सातवार तक, तीसरे नरक में छहवार तक, चौथे · नरकम पांचवार तक, पांचवें नरक में चारवार तक, छट्टे नरकमें तीनवार तक, और सातवें नरकमें दोवार तक, निरंतर जा सकता है, अधिक वार नहीं सकता । किन्तु जो जीव सातवें नरकसे आया है, उसको सातवें अथवा किसी और नरकमें अवश्य जाना पडता है, ऐसा नियम है । सातवें नरकसे निकलकर मनुष्यगति नहीं 'पाता, किन्तु तियंचगतिमें अवती ही उपजता है । छटे नरकसे निकले हुए जीव संयम ( मुनिका चरित्र ) धारण नहीं कर सकते । पांचवें नरकसे निकले हुए जीव मोक्षको नहीं जा सकते । चौधी पृथ्वीसे निकले हुये तीर्थंकर नहीं होते, किन्तु पहले दूसरे और तीसरे नरकसे निकले हुए तीर्थंकर हो सकते हैं । नरकसे निकले हुए जीव बलभद्र नारायण प्रतिनारायण और चक्रवर्ती नहीं होते ।
पापके उदयसे यह जीव नरकगतिमें उपजता है, जहां कि - नानाप्रकारके भयानक तीन दुःखको भोगता है । पहली चार पृथ्वी तथा पांचवी के तृतीयांश नरकोंमें ( विलोंमें ) उष्णताकी ती वेदना हैं तथा नीचेके नरकोंमें शीतकी तीव्रवेदना है। तीसरी पृथ्वीपर्यन्त अमरकुमार जातिके देव आकर नारकियोंको परस्पर लड़ाते हैं । नारकियोंका शरीर अनेक रोगोंसे सदा प्रसित रहता है, और