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________________ [ १४६] महास्कन्धके परमाणुओंकी संख्यासे चौथाई परमाणुओंके स्कन्धको उत्कृष्टस्कन्धप्रदेश कहते हैं, दो परमाणुओंके स्कन्धको जघन्यस्कन्धप्रदेश कहते हैं और बीचके स्कन्धको मध्यमस्कन्धप्रदेश कहते हैं। इस प्रकार स्कन्धके तीन भेद और एक परमाणु, सब मिलकर पुद्गलके चार भेद हुए । अथवा अन्य प्रकारसे पुद्गलद्रव्यके छह भेद कहे हैं । १ वादरवादर, २ वादर, ३ वादरसूक्ष्म, ४ सूक्ष्मवादर, ५ सूक्ष्म और ६ सूक्ष्मसूक्ष्म | जो पुद्गलपिंड दो खंड करनेपर अपने आप फिर नहीं मिलें, ऐसे काष्टपाषाणादिकको वादरवादर कहते हैं । जो पुद्गलपिंड खंड खंड किये हुए अपने आप मिल जाय, ऐसे दुग्ध घृत तैलादिक पुद्गलोंको वादर कहते हैं । जो पुद्गलपिंड स्थूल होनेपर भी छेद भेद और ग्रहण करनेमें नहीं आयें, ऐसे धूप छाया चांदनी आदिक पुद्गलोंको वादरसूक्ष्म कहते हैं । सूक्ष्म होनेपर भी स्थूलवत् प्रतिभासमान स्पर्शन--रसन-प्राण और श्रोत्रइन्द्रियग्राह्य स्पर्श रस गन्ध और शब्द रूप पुद्गलोंको सूक्ष्मवादर कहते हैं । इन्द्रियोंके अगोचर कर्मवर्गणादिकस्कन्धोंको सूक्ष्म कहते हैं । परमाणुको सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं। कोई कोई आचार्योंने ये छह भेद स्कन्धोंके माने हैं । वे कर्मवर्गणासे नीचे अणुकस्कन्धपर्यन्तके स्कन्धोंको सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं और परमाणुको भिन्नभेदमें ग्रहण करते हैं । उनके मतानुसार पुद्गलके सात भेद हैं । अथवा स्कन्धके पृथ्वी अप तेज और वायु ये चार भेद हैं । इनमेंसे प्रत्येक भेद स्पर्श रस गन्ध और वर्ण इन चारों गुण संयुक्त है, तथा ये ही पृथ्वी आदिक ही शब्दादिकरूप परिणमैं हैं । कई महाशय पृथ्वी आदिक चारोंको भिन्न भिन्न पदार्थ मानते हैं और पार्थिवादिक परमाणुओंको भिन्न भिन्न जातिवाले मानते हैं, पृथ्वीके परमाणुओंको स्पर्श रस गन्ध और वर्ण .
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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