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________________ [१४७] 'चारों गुणवाले, जलके परमाणुओंको गन्ध विना तीन गुणवाले, अग्निके परमाणुओंको वर्ण और स्पर्श दो गुणवाले और वायुके परमाणुओंको केवल स्पर्शगुणवाले मानते हैं, सो ठीक नहीं है। क्योंकि पृथ्वी आदिकके परमाणुओंका जलादिक परमाणुरूप परिणमन दीखता है । इसका खुलासा इस प्रकार है कि, काष्टादिक पृथ्वीरूप पुल अगिलप होते दीखते हैं, खातिनक्षत्रमें सीपके मुखमें गिरी हुई जलकी बूंद मोती हो जाती है, ग्रहण किया हुआ आहार वात (पवन ) पित्त (जठराग्नि ) रूप होता है, मेघ जलरूप हो जाता है, जल बर्फ (पृथ्वी ) रूप हो जाता है, दियासलाई (पृथ्वी) अग्निलप हो जाती है । यदि कोई कहे कि, दियासलाईमें अग्निके परमाणु पहलाहीसे थे, सो भी ठीक नहीं है । क्योंकि दियासलाईमें अग्निके लक्षण उष्ण स्पर्शका अभाव है । इत्यादि अनेक दोष आते है, इसलिये ये पृथ्वी आदिक भिन्नभिन्न द्रव्य नहीं हैं किन्तु एक पुबाट द्रव्यमे ही ये चारों पर्याय हैं । पृथ्वीमें चारों गुणोंकी मुख्यता है, जटमें गन्धकी गौणता है, अग्निमें गन्ध और रसकी गौणता है और वायुमें स्पर्शकी मुख्यता और शेष तीनकी गौणता है । ये चारें ही गुण परस्पर अविनाभावी हैं । जहां एक हैं वहां चारों है। ये स्कन्ध पुदलची अपेक्षासे यद्यपि अनादि हैं, तथापि उत्पत्तिकी अपेक्षा आदिमान् है । अब आगे स्कन्धोंकी उत्पत्तिके कारणका निरूपण करते हैं भेद (खंड होना) संघात (मिटना) और दोनोंसे (भेद संघातसे ) स्कन्धोंकी उत्पत्ति होती है । भावार्थ-दो परमाणुओंके मिलनसे व्यणुकस्कन्ध होता है, वणुकस्कन्ध और एक परमाणुके मिलनेसे व्यणुकस्कन्ध होता है, दो न्यणुकस्कन्ध अथवा एक व्यणु
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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