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[१४५] सूक्ष्मपरिणामरूप होनेसे कथंचित् सूक्ष्म है, स्थूल स्कन्धोंकी उत्पत्तिका कारण होनेसे कथंचित् स्थूल है, द्रव्यपनेका कभी नाश नहीं होता इसलिये कथंचित् नित्य है, स्निग्धादिकका परिणमन होता रहता है इसलिये कथंचित् अनित्य है, एकप्रदेशपर्यायकी अपेक्षासे कथंचित् एक रस गंध वर्ण और द्विस्पर्श रूप है, अनेकप्रदेशरूप स्कन्ध परिणामशक्ति सहित होनेसे कथंचित् अनेक रसादि रूप है, कार्यलिंगसे अनुमीयमान होनेकी अपेक्षासे कथंचित् कार्यलिङ्ग है
और प्रत्यक्षज्ञानविपयत्वपर्यायकी अपेक्षासे कथंचित् कालिङ्ग नहीं है । इस प्रकार परमाणु अनेकधर्मस्वरूप है । प्राचीन सिद्धान्तकारोंने भी कहा है
कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसगन्धवर्णो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ अब आगे स्कन्धका वर्णन करते हैं
वन्धपरिणामको प्राप्त हुए परमाणुओंको स्कन्ध कहते हैं । स्कन्धके यद्यपि अनन्त भेद हैं, तथापि संक्षेपसे तीन भेद हैं । १ स्कन्ध, २ स्कन्धदेश और ३ स्कन्धप्रदेश । भावार्थ-अनन्तानन्त परमाणुओंका महास्कन्ध उत्कृष्ट स्कन्ध है । महास्कन्धमें जितने परमाणु हैं, उसके आधेमें एक जोड़नेसे जो संख्या हो उसको जघन्यस्कन्ध कहते हैं, बीचके स्कन्धोंको मध्यमस्कन्ध कहते हैं, महास्कन्धमें जितने परमाणु हैं, उनसे आधे परमाणुओंके स्कन्धको उत्कृष्टस्कन्धदेश कहते हैं, महास्कन्धके परमाणुओंकी संख्यासे चौथाईमें एक मिलानेसे जितनी संख्या हो, उतने परमाणुओंके स्कन्धको जघन्यस्कन्धदेश कहते हैं, वीचके स्कन्धोंको मध्यमस्कन्धदेश कहते हैं ।
१. जे.सि. द.