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[१२३] उस ही क्रमसे दूसरी संरसों महाशलीका- कुंडमें डालिये । इसही प्रकार एक एक प्रतिशलाका कुंडकी एक एक सरसों महाशलाका कुंडमें डालते डालते जव महोशलाका कुंड भी भर जाय, उस समय सबसे बड़े अन्तके अनवस्था कुंडमें जितनी सरसों समाई, उतना ही जघन्य परीतासंख्यातका प्रमाण हैं।
संख्यामानके मूलभेद सात कहे. थे, इन सातोंके जघन्य मध्यम । उत्कृष्टकी अपेक्षासे २१ भेद हैं । आगेके मूल भेदके जघन्य भेदमेंसे एक घटानेसे पिछले मूलभेदका उत्कृष्ट भेद होता है । जैसे जघन्य परीतासंख्यातमेंसे एक घटानेसे उत्कृष्टसंख्यात तथा जघन्ययुक्तासंख्यातमेंसे एक घंटानेसे उत्कृष्ट परीतासंख्यात होता है । इसही प्रकार अन्यत्र भी जानना । जघन्य और उत्कृष्ट भेदोके वींचके सब भेद मध्यम भेद कहलाते हैं । इस प्रकार मध्यम और उत्कृष्टके खरूप जघन्यके स्वरूप जाननेसेही मालूम हो सकते हैं । इसलिये अब आगे जघन्य भेदोंका ही खरूप लिखा जाता है । जघन्यसंख्यात और जघन्य परीतासंख्यातका स्वरूप ऊपर लिखा जा चुका है, अव आगे जघन्ययुक्तासंख्यातका प्रमाण लिखते हैं।
जघन्यपरीतासंख्यात प्रमाण. दो राशि लिखना । एक विरलन राशि और दूसरी देय राशि । विरलन राशिका विरलन करना, अर्थात् विरलन राशिका जितना प्रमाण है, उतने एक लिखना, और . प्रत्येक एकके ऊपर एक एक देयराशि रखकर, समस्त देयराशियोंका परस्पर गुणन करनेसे जो गुणन फलं हो, उतना ही. जघन्ययुक्ता-. संख्यातंका प्रमाण है । भावार्थ-यदि, जघन्यपरीतासंख्यातका प्रमाण. चार : माना जाय, तो चारका विरलन कर १.१ १ १ प्रत्येक एकके ऊपरं देय राशि चार चार रखकरें । १४.चारों चौकोंका.