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________________ [ १२४ ] परस्पर गुणन करनेसे गुणनफल २५६ जघन्ययुक्तासंख्यात कां - प्रमाण होगा । इस ही जघन्य युक्तासंख्यातको आवली भी कहते . है । क्योंकि एक आवलीमें जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समय होते -हैं । जघन्य युक्तासंख्यातके वर्ग ( एक राशिको उसहीसे गुणाकार करनेसे जो गुणनफल होता है, उसको वर्ग कहते हैं । जैसे पांचका वर्ग पच्चीस है ।) को जघन्य असंख्यातासंख्यात कहते हैं । अब आगे जघन्य परीतानन्तका प्रमाण कहते हैं । जघन्यअसंख्यातासंख्यात प्रमाण तीन राशि लिखनी, अर्थात् १ विरलन, २ देय, ३ शलाका । विरलन राशिका विरलन कर प्रत्येक एकके ऊपर देयराशि रखकर समस्त देयराशियोंका परस्पर गुणाकार करना, और शलाका राशिमेंसे एक घटाना । इस पाये हुए गुणनफल - प्रमाण एक विरलन और एक देय इस प्रकार दो राशि करना | विरलन राशिका विरलन कर प्रत्येक एकके ऊपर देयराशि रखकर समस्त देयराशियोंका परस्पर गुणाकार करना और शलाका राशिमेंसे 'एक और घटाना । इस दूसरी बार पाये हुए गुणनफलप्रमाण पुनः . विरलन और देय राशिकरना और पूर्वोक्तानुसार देय राशियोंका परस्पर गुणाकार करना और शलाका राशिमेंसे एक और घटना । इसही अनुक्रमसे नवीन नवीन गुणनफलप्रमाण विरलन और देयके क्रमसे एक एक वार देय राशियोंका गुणाकार होनेपर शलाका राशिमेंसे एक एक घटाते घटाते जब शलाका राशि समाप्त हो जाय, उस समय जो अन्तिम गुणनफलरूप महाराशि होय, उस प्रमाण पुनः विरलन, देय, और शलाका ये तीन राशि लिखनी । विरलन राशिका विरलन - - कर, प्रत्येक एकके ऊपर देय राशि रख, देय राशिका परस्पर गुणाकार - करते करते पूर्वोक्त क्रमानुसार एक बार देय राशियोंका गुणाकार " • .
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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