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________________ भास्कर मांग है लक्ष्मण और अमर। उनका कुल 'वाजिकुल' कहलाता था। किन्तु मदेश्वर मन्दिर के शिलालेख से, जिसका समय ११६४ ई० है, पता चलता है कि उनके वंश का नाम 'वाजिकुल' था, पर उनके पिता का नाम मधुसूदन और माता का मुहियक्के था। उसी लेख के अनुसार उनके भाइयों का नाम कान्तिमय्य और हरियण्ण था। यह संभव है कि उनके माता-पिता और भाइयों के दो-दो नाम रहे हों और इस शिलालेख में केवल प्रसिद्ध नामों का ही उल्लेख हो। लेकिन पूर्व-कथित शिलालेख के संबंध मे भी यही बात कही जा सकती है। जो कुछ हो, इस संबंध मे कुछ निश्चय करना अत्यन्त कठिन है, जबतक कि इस संबंध मे अन्य प्रमाण उपलब्ध न हों। हुल ने विष्णुवर्धन, नरसिंह प्रथम और उसके उत्तराधिकारी वल्लाल द्वितीय-तीनों के समय में राजमन्त्रित्व का कार्य किया था। हुल ने श्रवणबेलगोल मे प्रसिद्ध 'चतुर्विंशति जिनालय' का निर्माण कराया था। चौबीस तीर्थङ्करों का मन्दिर होने के कारण उसका उक्त नाम पड़ा था। यह जिनालय ११५९ ई० में बनकर तैयार हुआ था। यह गोम्मटपुर का आभूपण माना जाता है। राजा नरसिंह द्वितीय अपनी विजय-यात्रा के अवसर पर स्वयं यहाँ आये थे और उन्होंने इस जिनालय की व्यवस्था के लिये कई गांवों का दान दिया था। राजा ने इसका नाम 'भव्यचूडामणि' रक्खा । ११७५ ई० मे हुल्ल को राजा बल्लाल द्वितीय ने सवनेरु तथा अन्य दो गॉव पुरस्कार में मे दिये, और हुल ने ये गाँव भी इसी जिनालय को उत्सर्ग कर दिये। श्रवणबेलगोल के अतिरिक्त अन्य कई स्थानों में भी उन्होंने धर्मानुराग और उदारता प्रदर्शित की। शान्तियगण शांतियएण के पिता का नाम पारिषरण या पार्श्वदेव और माता का बम्मल देवी था। शान्तियएण के पिता स्वयं एक पराक्रमी योद्धा थे। वे होयसल राजा के कोषाध्यक्ष थे। उन्होंने आहवमल्ल को परास्त किया था, किन्तु स्वयं उस लड़ाई में मारे गए थे। राजा नरसिंह ने शांतियाण को, उनके पिता की मृत्यु के बाद, 'कारिगुंड' नामक ग्राम दिया था। इसके वाद ही शांतियएण दंडनायक के पद से विभूषित किये गए। इन्होंने भी कई जिनालयों का निर्माण कराया। ईश्वर चमूपति ईश्वर चमूपति के पिता का नाम एरेयंगमय्य था, जो 'सर्वाधिकारी' और 'सेनापतिदंडनायक' के पद से विभूषित थे। कहा जाता है कि ईश्वर ने ही मन्दारगिरि पर स्थित जिनालय का जीर्णोद्धार कराया था। उसी बसदि के ११६० ई. के एक लेख से उनके संबंध की वातें मालूम होती हैं। उनके सैनिक पराक्रम के संबंध में हमें कुछ मालूम नही।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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