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________________ किरण ४] दक्षिण भारत के जैन वीर अन्य जैन वोर कर्णाटक में अन्य अनेक जैन वीर हो गए हैं, जिनके संबंध में हमें अधिक बातें मालूम नहीं। इन वीरों में रेचिमय्य का नाम प्रसिद्ध है। इन्हे 'वसुधैकबान्धव' की उपाधि मिली थी। पहले ये कलचुरीय राजा के यहाँ थे, पीछे होय्सल राजा के यहाँ चले आए। ये होयसल राजा बल्लाल द्वितीय थे। जैनमत की उन्नति के लिए इन्होंने जो कुछ किया, उसकी प्रशंसा कई लेखों में मिलती है। बल्लाल द्वितीय के ही यहाँ 'बूचिराज' नाम के एक दूसरे जैन सेनापति थे। ये कन्नड और संस्कृत-दोनों भाषाओं के विद्वान् थे और दोनों में कविता करते थे। उन्होंने सिगेनाड में एक त्रिकूट जिनालय बनवाया था। बल्लाल द्वितीय के राज्य-काल के अंतिम भाग में एक और प्रसिद्ध जैन सेनापति का आगमन होता है। इनका नाम अमृत था। कहा जाता है कि ये शूद्र-परिवार के थे। इनके पिता का नाम हरियम सेट्टि और माता का नाम सुग्गव्वे था। ये दंडनायक के पद पर थे। इन्होंने १२०३ में यकोटि जिनालय का निर्माण कर अपने धर्मानुराग का परिचय दिया। अन्य धर्मों के प्रति भी इन्होंने अपनी उदारता का परिचय दिया था। अन्तिम होयसल राजा वीर बल्लाल तृतीय के समय में कैतेय दंडनायक का पता मिलता है। ये एक प्रमुख जैन सेनापति थे। ये १३३२ ई० में वर्तमान थे, और 'सर्वाधिकारी' के पद पर थे, ऐसा लेखों से विदित होता है। नोट-इस निबंध के तैयार करने में बी० ए० सालेतोरे-लिखित 'मेडिएवल जैनिज्म' नामक पुस्तक से सहायता ली गई हैं, अतः लेखक उक्त ग्रन्थकार का आभारी है।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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