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________________ किरण ४] पाणिनि, पतञ्जलि और पूज्यपाद २१५ इस श्लोक में जितने नाम आये हैं, कोठारी जी उन्हें पूज्यपाद के नामान्तर बतलाते है । किन्तु यह ठीक नहीं है। इसके लिये हमें पट्टावली' का इससे पूर्व का श्लोक देखना चाहिये, जो निम्न प्रकार है -- "ततः पट्टद्वयी जाता प्राच्युदीच्युपलक्षणात् । तेषां यतीश्वराणां स्युर्नामानीमानि तत्त्वतः ॥" इस श्लोक में बतलाया है कि उसके बाद दो पट्ट हो गये एक पूर्वीय पट्ट और दूसरा उत्तरीय । उन पट्टों में जो मुनीश्वर हुए उनके वास्तविक नाम निम्न प्रकार है।' __इस श्लोक के साथ उक्त श्लोक को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जोता है कि उक्त श्लोक में जो यश कीर्ति, यशोनन्दी, द्वितीय नाम पूज्यपाद के धारक महामति देवनन्दी और गुणों के आकर गुणनन्दी का नाम आया है, ये सब नाम एक ही प्राचार्य के नहीं है, किन्तु पट्ट पर होने वाले विविध आचार्यों के नाम है। जो दो नाम एक ही आचार्य के थे, उन्हे पट्टावलीकार ने 'श्रीपूज्यपादापराख्यः' लिख कर स्वयं स्पष्ट कर दिया है। अन्य उपलब्ध प्रमाणों से भी पूज्यपाद के देवनन्दी और जिनेन्द्रबुद्धि ये दो ही नाम उपलब्ध होते है, यश-कीर्ति आदि नामों का समर्थन अन्य किसी भी प्रमाण -से नहीं होता। 'गुणनन्दी' नाम के समर्थन में कोठारी जी ने शब्दार्णवचन्द्रिका का जो 'श्रीपूज्यपादममलं गुणनन्दिदेवम्' इत्यादि श्लोक दिया है, उसका आशय समझने में भी उन्हें भ्रम हुआ है। इस श्लोक में ग्रन्थकार ने भगवान् महावीर के विशेषणरूप से क्रम से पूज्यपाद का, गुणनन्दी का और अपना निर्देश किया है। यह गुणनन्दी एक पृथक् आचार्य हुए है, जिन्होंने पूज्यपाद के सूत्रपाठ' को संशोधित और परिवर्धित कर के वह सूत्रपाठ तैयार र 'भास्कर' भाग १, किरण ४ मे नन्दिसंघ की पट्टावली २६ वें श्लोक से दी है और लिखा है कि इस पट्टावली के प्रारम्म के २५ श्लोक श्रीशुभचन्द्राचार्य की गुर्वावली के प्रारम्भिक २५ श्लोकों के ही समान हैं। अतः यह श्लोक यहो शुभचन्द्राचार्य की गुर्वावली से दिया गया है। उसमें भी इसके बाद 'यशःकीर्ति' इत्यादि श्लोक आता है। २ जैनेन्द्रव्याकरण के दो सूत्रपाठ उपलब्ध है-एक पर महावृत्ति है और दूसरे परशब्दार्णवचन्द्रिका तथा जैनेन्द्रप्रक्रिया है। स्व० के० बी० पाठक दूसरे पाठ को मौलिक बतलाते है। उन्होंने इसके सम्बन्ध मे एक लेख लिखा था। किन्तु श्रीयुत प्रेमीजी महावृत्तिवाले सूत्र-पाठ को ही मौलिक समझते है। इस सम्बन्ध मे 'जैनसाहित्य-संशोधक' भाग १, अङ्क २ मे प्रकाशित 'जैनेन्द्र व्याकरण और आचार्य देवनन्दी' शीर्षक-उनका महत्त्वपूण लेख पठनीय है। इस लेख के लिखने मे उससे भी सहायता ली गई है और इसके लिये मैं प्रेमीजी का आभारी हूं।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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