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________________ पाणिनि, पतञ्जलि और पूज्यवाद [लेखक-श्रीयुत प० कैलाशचन्द्र शास्त्री] अाध्यायीसूत्र के प्रणेता प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि और उनके भाष्यकार पतञ्जलि को इतिहासकारो ने ईस्वी सन् से पहले का विद्वान् सिद्ध किया है। किन्तु शोलापुर से प्रकाशित सर्वार्थसिद्धि-नामक ग्रन्थ की तथोक्त महत्वपूर्ण प्रस्तावना में जैनसमाज के उदीयमान विद्वान् श्रीगौतमचन्द्र मोतीचन्द्र कोठारी एम० ए० ने उन्हें श्राद्य जैनव्याकरण के प्रणेता आचार्य पूज्यपाठ (ईसा को ५वीं शताब्दी) का समकालीन सिद्ध करने का प्रयास किया है। कोठारी जी का उक्त प्रयास यदि किन्हीं ठोस प्रमाणों के आधार पर अवलम्बित होता तो सचमुच जैनसमाज के लिये यह गर्व की बात होती। किन्तु मुझे दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि उन्होंने लिखते समय कदाचित् यह सोचा ही नहीं कि यह कार्य कितना गुरुतर है। उनकी भूमिका के ऐतिहासिक अंश को पढ़ कर मुझे तो यही प्रतीत हुआ कि वह इतिहासज्ञों के लिये नहीं लिखा गया और न ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ही लिखा गया है। उसके लिखने में साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से ही काम लिया गया है और संभवत वह उसी तरह के लोगों के लिये लिखा भी गया है। लेख का कोई-कोई मुद्दा (युक्ति) विचारणीय भी है, किन्तु लेखक ने इतने उतावलेपन से अपनी लेखनी को चलाया है कि उन्होंने अपने किसी भी तर्क को डटकर प्रमाणित नहीं किया है। उन्हें सोचना चाहिये था कि जिन प्रन्यकारों के सम्बन्ध मे वे लेखनी चला रहे है उनके बारे में देशीय और विदेशीय लेखकों ने ज़रूरत से ज्यादा लिखा है और आज तक के सभी इतिहासज्ञ उन्हें ईस्वी सन् में पहले को विद्वान् मानने में एकमत है। अतः उनके बारे में जो कुछ लिखा जाना चाहिये वह खूब सोच-समझ कर लिखा जाना चाहिये, जिससे अन्य इतिहासज्ञ उस पर विचार कर सकें और लेखक को उनके हास्य का पात्र न बनना पड़े। किन्तु लेखक ने उस पोर विल्कुल ध्यान नहीं दिया जान पडता। उनके लेख को पढ़ने से ऐसा मालूम होता है कि उन्होंने जो कुछ लिखा उसे स्वय सिद्ध समझ लिया। अस्तु, मेरा लिखना फहां तक ठीक है यह आगे की आलोचना से स्वयं ज्ञात हो जायगा । पूज्यपाद के नाम नन्दिसंघ की पहावली में एक श्लोक निम्न प्रकार है "यशःकीतिर्यशोनन्दी देवनन्दी महामतिः । श्रीपूज्यपादापराख्य गुणनन्दी गुणाकरः॥"
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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